|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल,द्वितीया, सोमवार,
वि० स० २०७०
सभी नाम-रूपोंमें भगवान को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें -२-
गत
ब्लॉग से आगे ... याद रखो -इससे भी महत्व की बात यह है की आत्मारूप में स्वयं श्रीभगवान ही
प्रकाशित हैं | साथ ही चेतन आत्माके अतिरिक्त जड़ प्रकृतीके रूपमें भी उन्हींकी
मंगलमयी लीला प्रकाशित है, जो उन लीलामय से सदा-सर्वदा अभिन्न है | अतएव जड़-चेतन
जो कुछ भी है-सभी श्रीभगवान ही हैं | वे ही लीलामय
विभिन्न नाम-रूप धारण करके लीला कर रहे हैं | यदि तुम भक्त हो या बनना चाहते हो,
अथवा एकमात्र सत्य के अन्वेषक हो तो तुम्हें सदा-सर्वदा सभी नाम-रूपोंमें एकमात्र
भगवानको ही प्रकट समझकर सदा सभीका हित, सभीका कल्याण चाहना-करना चाहिए |
याद रखो
-किसीभी प्राणीका असत्कार करना, किसीका अहित करना अथवा दुःख पहुँचाना
अपने परमाराध्य भगवानका ही अहित-असत्कार करना है और भगवानको ही दुःख पहुँचाना है
तथा यह महापाप है; अतएव इससे सदा बचे रहो-सदा सावधानी के
साथ इस प्रकार की कोई भी चेष्ठा मत करो |
याद रखो
-जो समस्त नाम-रूपोंवाले प्राणियों में भगवान को देखकर सदा-सर्वदा सबका
सम्मान करता है, सबकी सेवा करता है, सबका हित करता है, उसके द्वारा सदा भगवान ही
सम्मानित, सेवित, सुखी होते हैं और हित प्राप्त करते हैं | वह सदा भगवानकी ही पूजा
करता है | भगवान उसकी इस नित्य-पूजा से परम प्रसन्न होकर उसे अपना स्वरुप दान देते
हैं |
याद रखो -यदि सबमें अपने आत्मा को समझकर सबका सम्मान, सेवा और हित करते हो, तबतो
सदा ही आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती है और सदा ही आत्मरमण करते हुए तुम अपने
स्वरूपमें स्थित रहते हो |..
शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
0 comments :
Post a Comment