Monday, 10 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -10-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल,द्वितीया, सोमवार, वि० स० २०७०

सभी नाम-रूपोंमें भगवान को अभिव्यक्त देखते हुए व्यवहार करें -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -इससे भी महत्व की बात यह है की आत्मारूप में स्वयं श्रीभगवान ही प्रकाशित हैं | साथ ही चेतन आत्माके अतिरिक्त जड़ प्रकृतीके रूपमें भी उन्हींकी मंगलमयी लीला प्रकाशित है, जो उन लीलामय से सदा-सर्वदा अभिन्न है | अतएव जड़-चेतन जो कुछ भी है-सभी श्रीभगवान ही हैं | वे ही लीलामय विभिन्न नाम-रूप धारण करके लीला कर रहे हैं | यदि तुम भक्त हो या बनना चाहते हो, अथवा एकमात्र सत्य के अन्वेषक हो तो तुम्हें सदा-सर्वदा सभी नाम-रूपोंमें एकमात्र भगवानको ही प्रकट समझकर सदा सभीका हित, सभीका कल्याण चाहना-करना चाहिए |

 

याद रखो -किसीभी प्राणीका असत्कार करना, किसीका अहित करना अथवा दुःख पहुँचाना अपने परमाराध्य भगवानका ही अहित-असत्कार करना है और भगवानको ही दुःख पहुँचाना है तथा यह महापाप है; अतएव इससे सदा बचे रहो-सदा सावधानी के साथ इस प्रकार की कोई भी चेष्ठा मत करो |

 

याद रखो -जो समस्त नाम-रूपोंवाले प्राणियों में भगवान को देखकर सदा-सर्वदा सबका सम्मान करता है, सबकी सेवा करता है, सबका हित करता है, उसके द्वारा सदा भगवान ही सम्मानित, सेवित, सुखी होते हैं और हित प्राप्त करते हैं | वह सदा भगवानकी ही पूजा करता है | भगवान उसकी इस नित्य-पूजा से परम प्रसन्न होकर उसे अपना स्वरुप दान देते हैं |

 

याद रखो -यदि सबमें अपने आत्मा को समझकर सबका सम्मान, सेवा और हित करते हो, तबतो सदा ही आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती है और सदा ही आत्मरमण करते हुए तुम अपने स्वरूपमें स्थित रहते हो |.. शेष अगले ब्लॉग में .          

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram