Tuesday, 11 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -11-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल,तृतीया, मंगलवार, वि० स० २०७०

 
सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ६. याद रखो -सर्वत्र प्रभुकी ही सत्ता शक्ति, विभूति फैली हुयी है – सब प्रभु की ही अभिव्यक्ति है | अतएव ऐसा अनुभव करो की तुम्हारे अंदर नित्य-निरंतर प्रभुकी सत्ता, शक्ति और विभूति भरी है | सदा इस सत्यके दर्शन करो |

 

याद रखो -तुम्हारे जीवनमें सदा-सर्वदा निरंतर प्रभुका अत्यंत मधुर संगीत बज रहा है; ऐसा अनुभव करनेपर तुम किसी भी स्तिथिमें भय का अनुभव नहीं करोगे |

 

याद रखो -प्रभु के साथ नित्य-नित्य सम्बन्ध की अनुभूति हो जानेपर अहंता तथा ममताके – ‘मैं’ तथा ‘मेरे’ के सारे पदार्थ बनें या बिगडें, जियें या मरें, उससे तुम्हारा कुछ न बिगडेगा, न तुम्हें सुख-दुःख ही होंगे |  तुम नित्य हर हालत में परमानंद में निमग्न रहोगे |

 

याद रखो -यहाँ जो कुछ है या जो कुछ होता है, सब प्रभु हैं और प्रभु की लीला है | प्रभु स्वयं ही सारी लीला बनकर लीलायमान होते हैं | अतएव लीलामयमें और उनकी लीलामें कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही है | वे ही निरंतर तुम्हारे भीतर- बाहर बसे हुए लीला करते रहते हैं |

 
याद रखो -जो नित्य-निरंतर बाहर और भीतर केवल उन प्रभु को ही देखता है, वह वास्तव में उन्हीं में निवास करता है और भगवान तोह उसमें है ही | वे सदा हैं, सर्वथा हैं, सर्वत्र हैं | वे ही अत्यंत दूर हैं और वे ही अत्यंत समीप हैं | उनके सिवा अन्य कुछ भी है ही नहीं |.. शेष अगले ब्लॉग में .         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram