Wednesday 12 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -12-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, चतुर्थी, बुधवार, वि० स० २०७०

सब कुछ प्रभु हैं और उनकी लीला है -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -मिथ्या मोह तथा भ्रमसे ही प्राकृतिक पदार्थोंमें तुम उनकी सत्ता, शक्ति तथा विभूति मानकर उनका सेवन करते हो और इसीसे बार-बार घोर अशांतिका अनुभव करते हो | इसी भ्रम के कारण तुम शोक, विषाद का अनुभव करते हो और इसी भ्रम से तुम दिन-रात, अहंता-ममता, वासना-कामना, आसक्ति-लोभ तथा क्रोध-हिंसाकी अग्निमें अनवरत जलते रहते हो |

 

याद रखो -एक प्रभु सत्ता ही नित्य-सत्य है, सत्य-स्वरुप है | उन्ही में सदा-सर्वदा अपनेको मिलाए रखना चाहिए | उन्हीं का सदा आश्रय करना चाहिए | वे ही सारी शान्ति, आनंद और सुख के एक मात्र मूल स्तोत्र हैं, वे ही निर्मल – शान्ति तथा सुख के अनंत समुद्र हैं | तुम अपने जीवनमें नित्य उन्हीं आत्यंतिक शान्ति तथा सुख के स्वरुप भगवान से चिपटे रहो | एक क्षण के लिए भी उनसे विलग होने की कल्पना तक मत करो |

 

याद रखो -उन प्रभु को कहीं से आना नहीं हैं | वे सदा-सर्वत्र वर्तमान हैं | ऐसा कोई देश-काल-वास्तु है ही नहीं जिसमें वे न हों | उन्हींकी सत्ता से सबकी सत्ता है, उन्हीं की शक्ति से सब शक्तिमान हैं, उन्हीं की विभूति से सबमें विभूति हैं |

 

याद रखो -प्राकृतिक पदार्थ बनने तथा नष्ट होने वाले हैं | इनका सृजन-संहार होता रहता है | प्रकृति की प्रत्येक वस्तु अनित्य और अपूर्ण है; परन्तु भगवान अनादी, अनंत, नित्य वर्तमान हैं | वे सदा स्वरुप से ही वर्तमान हैं | तुम उन्हीं का आश्रय करो | उन्हींकी सत्ता में अपनी सत्ता को मिला दो | .. शेष अगले ब्लॉग में .        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!      
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Ram