Thursday, 13 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -13-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, पन्चमी, गुरूवार, वि० स० २०७०

सच्चे सुख की प्राप्ति का उपाय -१-

 

गत ब्लॉग से आगे ... ७.याद रखो -जहां सांसारिक भोगोंकी नयी-नयी इच्छाएं उत्पन्न होती हैं और आवश्यकताएं बढती रहती हैं, वहाँ सहज ही अभावका अनुभव होता रहता है | कैसी भी महान संपन्न स्तिथि हो, कभी संतोष नहीं होता और असंतोष ही दुःख का हेतु है |

 

याद रखो -साधारण, सुगम तथा सादे जीवन-निर्वाहके लिए मनुष्य की आवश्यकता बहुत अधिक नहीं होती और उसकी पूर्तीके लिए इच्छा तथा विधि संगत कर्म भी करना अनुचित नहीं है – उसमें आपत्ति नहीं है | इस आवश्यकता की पूर्ती में बहुत कठिनता भी नहीं होती | व्यसन तथा तृष्णा-जनित बढ़ी हुयी इच्छा तथा आवश्यकताओं में जो एक निरंतर अभावका अनुभव होता रहता है, वह भी इसमें नहीं होता | इसलिए सहजही जीवन में सुख रहता है |

याद रखो -सुख किसी संपत्ति या स्तिथिमें नहीं है; सुख है अभावके अनुभव से रहित संतोषकी वृत्ति में | यह वृत्ति किसी बाह्य अवस्था-विशेष की अपेक्षा नहीं रखती | प्रत्येक परिस्थितिमें मनुष्य संतुष्ट रह सकता है – तृष्णा-जनित अभाव-आवश्यकताकी अग्निके बूझ जानेपर तथा परम सुह्द भगवानके मंगलमय विधान पर विश्वास करनेपर |.. शेष अगले ब्लॉग में .        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram