|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, पन्चमी, गुरूवार,
वि० स० २०७०
सच्चे सुख की प्राप्ति का उपाय -१-
गत
ब्लॉग से आगे ... ७.याद रखो
-जहां सांसारिक भोगोंकी नयी-नयी इच्छाएं उत्पन्न होती हैं और
आवश्यकताएं बढती रहती हैं, वहाँ सहज ही अभावका अनुभव होता रहता है | कैसी भी महान
संपन्न स्तिथि हो, कभी संतोष नहीं होता और असंतोष ही दुःख का हेतु है |
याद रखो -साधारण, सुगम
तथा सादे जीवन-निर्वाहके लिए मनुष्य की आवश्यकता बहुत अधिक नहीं होती और उसकी
पूर्तीके लिए इच्छा तथा विधि संगत कर्म भी करना अनुचित नहीं है – उसमें आपत्ति
नहीं है | इस आवश्यकता की पूर्ती में बहुत कठिनता भी नहीं होती | व्यसन तथा तृष्णा-जनित बढ़ी हुयी इच्छा तथा आवश्यकताओं में जो एक निरंतर अभावका अनुभव
होता रहता है, वह भी इसमें नहीं होता | इसलिए सहजही जीवन में सुख रहता है |
याद रखो -सुख किसी
संपत्ति या स्तिथिमें नहीं है; सुख है अभावके अनुभव से रहित संतोषकी वृत्ति में |
यह वृत्ति किसी बाह्य अवस्था-विशेष की अपेक्षा नहीं रखती | प्रत्येक परिस्थितिमें
मनुष्य संतुष्ट रह सकता है – तृष्णा-जनित अभाव-आवश्यकताकी अग्निके बूझ जानेपर तथा
परम सुह्द भगवानके मंगलमय विधान पर विश्वास करनेपर |.. शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
0 comments :
Post a Comment