Friday, 14 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -14-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, षष्ठी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

सच्चे सुख की प्राप्ति का उपाय -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -अपनी सहज सुखकी स्थिति से, प्रत्येक परिस्तिथिको मंगलमय मानने-जानने की वृत्तिसे और यथा-लाभ संतुष्ट रहनेके स्वभावसे विचलित होकर जब मनुष्य विविध भोगोंकी वासना-तृष्णाके जालमें फँस जाता है, जब उसके ह्रदय में उत्तरोत्तर बढ़ने वाली कामना की आग जल उठती है, तब किसी भी स्थितिमें वह संतुष्ट नहीं होता – अतएव वह कभी भी दुःखसे मुक्त नहीं हो सकता | उसका संताप – दुःख उत्तरोत्तर बढ़ता ही चला जाता है | इस प्रकार मनुष्य स्वयं ही अनावश्यक भोग-कामनाओंको ह्रदयमें जगाकर दुखोंको बुला लेता है और जीवन की अंतिम सांस तक – मृत्युके बिंदु तक असंख्य दुखोंसे घिरा रहता है | उसका मन कभी चिंता-रहित, प्रशांत और संताप-शून्य होकर सुखके दर्शन नहीं कर पाता |

 

याद रखो -यहाँ जो भोगोंके अभाव की आगमें जलता हुआ मरता है, मरनेके बाद भी लोकांतरमें उसे उसी आगमें जलना पड़ता है | यहाँ की काम-वासना उसके अंदर वहाँ भी ज्यों-की-त्यों वर्तमान रहकर उसे संतप्त करती रहती है |

 

याद रखो -इसके विपरीत जो अनावश्यक भोग-कामनाओं से मुक्त है, जिसका मन हर हालतमें संतुष्ट है, जो कभी भी अभाव का अनुभव नही करता और सदा सहज ही परम-पावन भगवानके मंगलमय विधान के अनुसार प्राप्त प्रत्येक परिस्थिति में भगवानकी कृपाके दर्शन करता रहता है, वह मृत्युके समय भोगों से सर्वथा रहित और भगवानकी मंगलमयी स्मृतिमें संलग्न रहता है | उसका मन भोगोंके अभाव का अनुभव न करके भगवानके परम सौहार्दका अनुभव करके आह्लादित रहता है | वह अत्यंत शान्ति-सुखके साथ देह-त्याग करके जाता है और भगवानकी स्मृतिमें ही मृत्यु होनेके कारण मृत्युके अनंतर वह निश्चितरूपसे निस्संदेह भगवानको ही प्राप्त होता है |..... शेष अगले ब्लॉग में.         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram