Sunday, 16 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -16-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, सप्तमी, रविवार, वि० स० २०७०

मनुष्य-जीवनका एकमात्र उद्देश्य – भगवतप्राप्ति -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -इसलिए मनुष्यका यह कर्तव्य है की परमानंदमय भगवानकी प्राप्ति या मोक्ष-प्राप्ति अथवा भगवत-प्रेम-प्राप्ति स्वरुप महान लक्ष्य पर सदा स्थिर रहे – भगवत-प्राप्ति या भगवत-प्रेमको ही जीवनका एकमात्र परम उद्देश्य समझे, बुद्धिको सदा भगवत-सम्बन्धी विचारोंमें तथा भगवत-प्राप्ति के साधानोंके  अनुष्ठानमें ही लगाए रखे, पवित्र तथा भगवद-मुखी निश्चयात्मिका बुद्धिके द्वारा मनको सदा भगवत-सम्बन्धी संकल्पों तथा स्मरणमें संलग्न करता रहे; कभी भी अनर्थ या व्यर्थ निश्चय न करे, इन्द्रियोंको सदा भगवत-सम्बन्धी विषयोंमें ही निरंतर इन्द्रिय, मन और बुद्धि को नियुक्त करता रहे और आपको सदा निर्मल भगवत-प्रेमकी – परमानन्दकी प्राप्ति होती रहे |

 

याद रखो -जिसके कान पर-निंदा, पर-चर्चा, असत्-वार्ता, व्यर्थकी बातचीत एवं पतनकी ओर ले जानेवाले गान-वाद्य या कोई भी शब्द या अपनी प्रशंसाके वाक्य न सुनकर केवल सत्-चर्चा, भगवत-लीला-कथा, भगवत-स्वरूपकी वार्ता, संतों-भक्तोंके गुणगान, जीवन को उच्च स्तरपर पहुँचाने वाले वाक्य सुनते रहते हैं, जिनकी आँखें भोग-विषयों को न देखकर प्राकृत जगत में सर्वत्र भगवानको और भगवानके सौंदर्यको, साधू-महात्मा तथा संतोंको, पवित्र वस्तुओं तथा स्थानोकों देखती हैं; जिनकी इन्द्रियाँ कोमल विकारी पदार्थों, विकार उत्पन्न करने तथा बढाने वाले अंगोंका स्पर्श न करके पवित्र करनेवाले संत-चरणोंका, जीवनमें सात्विकता लाने वाले पदार्थोंका स्पर्श करती रहती हैं; जिनकी जिव्हा स्वाद-लानेवाले विकारी राजस-तामस पदार्थोंका रस न चखकर सात्विक पदार्थोंका तथा भगवद-प्रसाद का रस लेती है और जिनकी नासिका विकार उत्पन्न करनेवाले सुगंध-द्रव्योंको छोडकर पवित्र गंधका, भगवत-प्रसादरूप गंधका और सात्विक पदार्थोंके गंध का सेवन करती है, वे पुरुष इन इन्द्रियोंके द्वारा भगवानकी सेवा करते हैं, इन्द्रियोंके ये पवित्र-विषय उनके मन-बुद्धिको और भी पवित्र करते रहते है और उनके शरिरोंके द्वारा भी भगवत-सेवाका ही कार्य होता है – इस प्रकार उनके मन, बुद्धि, इन्द्रिय तथा शरीर स्वयं भगवत-कार्यमें लगे रहते हैं, एक दूसरों को लगाते रहते हैं | इससे उनका जीवन पवित्र, शांत, सुखमय होकर भगवत-प्राप्ति या भागवत-प्रेम प्राप्तिके द्वारा जीवन सफल हो जाता है | अतएव सदा-सर्वदा बुद्धिको विवेकवती बनाकर मन-इन्द्रियोंको निरंतर भगवानके पवित्र पथपर चलाते रहें – यही परम कर्तव्य है |..... शेष अगले ब्लॉग में.        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram