|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, दशमी, (श्रीगंगा दसहरा), मंगलवार,
वि० स० २०७०
संतका संग एवं सेवन करें -२-
गत
ब्लॉग से आगे ... प्रगतिके वे लक्षण ये हैं:-
१.काम, क्रोध, लोभ, मद, अभिमान,
ईर्ष्या, द्वेष, वैर, हिंसा, विषाद, शोक, भय, पर-अहितमें रूचि, व्यर्थ चिंतन एवं
भाषण, कटु भाषण आदिका न रहना |
२.मनमें विकार उत्पन्न करनेवाले
शारीरिक, मानसिक, साहित्यिक – कुसंग का त्याग |
३.जगतके विषयों की वि-स्मृति |
४.भोगोंमें वैराग्य तथा उपरति |
५.जागतिक लाभ-हानि तथा
अनुकूलता-प्रतिकूलता में सुख-दुःख न होना, समान स्तिथि रहना |
६.बुद्धि, मन तथा इन्द्रियोंका
भोगोंकी ओरसे हटकर भगवानमें लगे रहना |
७.भगवानके नाम-गुण-लीला-तत्त्व आदिके
श्रवण-कीर्तन-स्मरणमें मधुर रूचि |
८.दैवी-संपत्ति के सभी लक्षणों का सहज विकास |
९.संतके तथा भगवानके अनुकूल आचरण |
१०.अपने इष्ट-भगवान का नित्य मधुर स्मरण |
११.स्वाभाविक
ही ‘सर्व-भूतहित’ की भावना तथा शास्त्र-विहित कर्मोंमें प्रवृत्ति |..... शेष
अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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