Tuesday, 18 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -18-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, दशमी, (श्रीगंगा दसहरा), मंगलवार, वि० स० २०७०

संतका संग एवं सेवन करें -२-

गत ब्लॉग से आगे ... प्रगतिके वे लक्षण ये हैं:-

१.काम, क्रोध, लोभ, मद, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष, वैर, हिंसा, विषाद, शोक, भय, पर-अहितमें रूचि, व्यर्थ चिंतन एवं भाषण, कटु भाषण आदिका न रहना |

२.मनमें विकार उत्पन्न करनेवाले शारीरिक, मानसिक, साहित्यिक – कुसंग का त्याग |

३.जगतके विषयों की वि-स्मृति |

४.भोगोंमें वैराग्य तथा उपरति |

५.जागतिक लाभ-हानि तथा अनुकूलता-प्रतिकूलता में सुख-दुःख न होना, समान स्तिथि रहना |

६.बुद्धि, मन तथा इन्द्रियोंका भोगोंकी ओरसे हटकर भगवानमें लगे रहना |

७.भगवानके नाम-गुण-लीला-तत्त्व आदिके श्रवण-कीर्तन-स्मरणमें मधुर रूचि |

८.दैवी-संपत्ति के सभी लक्षणों का सहज विकास |

९.संतके तथा भगवानके अनुकूल आचरण |

१०.अपने इष्ट-भगवान का नित्य मधुर स्मरण |

११.स्वाभाविक ही ‘सर्व-भूतहित’ की भावना तथा शास्त्र-विहित कर्मोंमें प्रवृत्ति |..... शेष अगले ब्लॉग में .        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram