Wednesday, 19 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनी -19-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, निर्जला एकादशी, बुधवार, वि० स० २०७०

संतका संग एवं सेवन करें -३-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -उपर्युक्त लक्षण जीवनमें प्रकट होने लगें तो समझो की वास्तवमें ही संतका संग तथा सेवन हो रहा है | जैसे सूर्यके उदय होनेपर प्रकाश का होना अनिवार्य तथा स्वयं-सिद्ध प्रत्यक्ष है, वैसे ही संतके संग तथा सेवन से उपर्युक्त भावों तथा गुणों का प्रकाश अनिवार्य, स्वयंसिद्ध तथा प्रत्यक्ष होता है |

 

याद रखो -संतका संग और सेवन करनेपर भी यदि उपर्युक्त लक्षणोंका उदय न होकर उसके विपरीत आसुरी संपत्ति का विकास तथा विस्तार, भोगोंमें तथा पापोंमें रूचि, शास्त्र-निषिद्ध कर्मोंमें राग, पर-अहित में प्रसन्नता, विषय-चिंतन आदि होते हैं तो समझना चाहिए की या तो जिनको संत माना गया है, वे संत नहीं है अथवा उनका संग और सेवन न करके उनके नामपर विषय-संग तथा विषय-सेवन ही किया जा रहा है; भगवत-प्राप्तिका उद्देश्य ही नहीं है |.... शेष अगले ब्लॉग में .         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram