|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, निर्जला एकादशी, बुधवार,
वि० स० २०७०
संतका संग एवं सेवन करें -३-
गत
ब्लॉग से आगे ... याद रखो -उपर्युक्त लक्षण जीवनमें प्रकट होने लगें तो समझो की वास्तवमें ही
संतका संग तथा सेवन हो रहा है | जैसे सूर्यके उदय होनेपर प्रकाश का होना अनिवार्य
तथा स्वयं-सिद्ध प्रत्यक्ष है, वैसे ही संतके संग तथा सेवन से उपर्युक्त भावों तथा
गुणों का प्रकाश अनिवार्य, स्वयंसिद्ध तथा प्रत्यक्ष होता है |
याद रखो -संतका संग और
सेवन करनेपर भी यदि उपर्युक्त लक्षणोंका उदय न होकर उसके विपरीत आसुरी संपत्ति का
विकास तथा विस्तार, भोगोंमें तथा पापोंमें रूचि, शास्त्र-निषिद्ध कर्मोंमें राग,
पर-अहित में प्रसन्नता, विषय-चिंतन आदि होते हैं तो समझना चाहिए की या तो जिनको
संत माना गया है, वे संत नहीं है अथवा उनका संग और सेवन न करके उनके नामपर
विषय-संग तथा विषय-सेवन ही किया जा रहा है; भगवत-प्राप्तिका उद्देश्य ही नहीं है |.... शेष
अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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