Saturday, 22 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -22-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०७०

एक ही परमात्माकी अनंत रूपोंमें अभिव्यक्ति -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ११. याद रखो -परमात्मा एक है और वही अनंत रूपोंमें अभिव्यक्त है | जब तक उन परमात्माका बाहर-भीतर, सर्वत्र-सदा साक्षात्कार नहीं होता, तब तक कभी भी सदा रहनेवाली वास्तविक सुख-शान्ति नहीं मिल सकती |

 

याद रखो -जैसे एक ही अग्नि अव्यक्त रूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कहीं कोई भेद नहीं है, पर जब वह किसी आधार-वस्तुमें व्यक्त होकर प्रज्वलित होती है, तब वह उसी वस्तुके आकारका दृष्टिगोचर होने लगती है; वैसे ही समस्त प्राणियोंके अंतर-आत्मा रूपमें विराजित अन्तर्यामी परमात्मा सबमें समभावसे व्याप्त हैं; उनमें कहीं कोई भेद नहीं है, तथापि वे एक होते हुए ही उन-उन प्राणियोंके अनुरूप विभिन्न रूपोंमें दिखाई देते हैं | पर वे उतने ही नहीं हैं, उन सबके बाहर भी अनंत रूपोंमें स्थित हैं |

 

याद रखो -जैसे एक ही अव्यक्त रूपसे समस्त ब्रह्माण्डमें व्याप्त है, उसमें कोई भेद नहीं है; परन्तु व्यक्त होकर विभिन्न वस्तुओंके संयोगसे वह उन्हींके अनुरूप गति तथा शक्तिमान दिखाई देता है, वैसे ही समस्त प्राणियोंके अन्तरात्मा परमात्मा एक होते हुए ही उन-उन प्राणियोंके सम्बन्धसे विभिन्न पृथक-पृथक गति और शक्तिवाले दिखाई देते हैं, उन सबके बाहर भी अनंत-असीम-असंख्य विलक्षण रूपोंमें स्थित हैं |.. शेष अगले ब्लॉग में ...         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!      
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Ram