Tuesday 25 June 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -25-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ कृष्ण, द्वितीया, मंगलवार, वि० स० २०७०

25 June 2013, Tuesday

भगवान् की उपासना का यथार्थ स्वरुप -२-

गत ब्लॉग से आगे ... याद रखो -तुम्हें मन मिला है सारी वासना-कामनाओंके जालसे मुक्त होकर समस्त जागतिक स्फुरनाओंको समाप्तकर भगवान् के रूप-गुण-तत्त्वका मनन करनेके लिए और बुद्धि मिली है – निश्चयात्मिका होकर भगवान् में लगी रहने के लिए | यही मन-बुद्धिका समर्पण है | भगवान् यही चाहते हैं | इसलिए मनके द्वारा निरंतर अनन्य चित्तसे भगवान् का चिंतन करो और बुद्धिको एकनिष्ठ अव्यभिचारिणी बनाकर निरन्तर भगवान् में लगाए रखो | यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है |

 

याद रखो -तुम्हें शरीर मिला है भगवद-भावसे गुरुजनोंकी, रोगियोंकी, असमर्थोंकी आदर-पूर्वक सेवा-टहल करनेके लिए, देवता-द्विज-गुरु-प्राज्ञके पूजनके लिए, पीड़ितकी रक्षाके लिए और सबको सुख पहुँचानेके लिए | अतएव शरीरको संयमित रखते हुए शरीरके द्वारा यथा-योग्य सबकी सेवा-चाकरी-रक्षा आदिका कार्य संपन्न करते रहो | यह भी भगवान् के समीप बैठनेकी एक उपासना है |

 

याद रखो -तुम्हें मनुष्य-जीवन मिला है केवल श्रीभगवान् का तत्त्व-ज्ञान, भगवान् के दर्शन या भगवान् के दुर्लभ प्रेमकी प्राप्तिके लिए | यही मानव-जीवनका परम साध्य है और इसी साध्यकी प्राप्तिके लिए सतत सावधान रहते हुए यथा-योग्य पूर्ण प्रयत्न करते रहना ही मनुष्यका परम कर्तव्य है | इस कर्तव्य पालनमें सावधानीसे लगे रहना ही वास्तविक उपासना है | इसके विपरीत भोगों-सुखकी मिथ्या आशा-आस्था-आकांक्षाको लेकर जो प्रयत्न करना है, वह तो प्रमाद है और आत्महत्याके सामान है | अतएव भोग-सुखकी मिथ्या आशा-आकांक्षाका सर्वथा त्याग करके मानव-जीवनको सदा-सर्वदा सब प्रकारसे भगवत-प्राप्तिके साधनमें, अपनी स्थिति और रूचिके अनुसार ज्ञान-कर्म-उपासना रूप किसीभी उपासनामें लगाए रखो | यही मानव-जीवनका सदुपयोग है और इसीमें मानव-जीवनकी सफलता है | यही भगवान् के समीप बैठना है और यही यथार्थ उपासना है |... शेष अगले ब्लॉग में.        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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