Thursday, 27 June 2013

शुभ संग्रह

|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ कृष्ण, पंचमी, गुरुवार, वि० स० २०७०


धर्म और उसका फल 

गत ब्लॉग से आगे ...धर्मपरायण मनुष्य दुसरे का हित मानते हुए ही अपना हित चाहते है | उन्हें दुसरे के अहित में अपना हित कभी दिखता ही नहीं | पर हित से ही परम गति प्राप्त होती है | धर्मशील पुरुष हिताहित का विचार करके सत्पुरुषो का संग करता है,सत्संग से धर्मबुद्धी बढती है और उसके प्रभाव से उसका जीवन धर्ममय बन जाता है | वह धर्म से ही धन का उपार्जन करता है | वही काम करता है, जिससे सद्गुणों की वृद्धी हो | धार्मिक पुरुषो से ही उसकी मित्रता होती है |वह अपने उन धर्मशील मित्रो के तथा धर्म से कमाये हुए धन के द्वारा इस लोक और परलोक में सुख भोगता है | धर्मात्मा मनुष्य धर्मसम्मत इन्द्रियसुख को प्राप्त करता है, परन्तु वह धर्म का फल पाकर ही सतुस्ट नहीं हो जाता | वह सत-असत का विचार करके वैराग्य का अवलंबन करता है | वैराग्य के प्रभाव से उसका चित विषयों से हट जाता है | फिर वह जगत को विनाशी समझ कर निष्काम कर्म के द्वारा मोक्ष के लिये प्रयत्न करता है |

शेष अगले ब्लॉग में.......   

—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तकसे, कोड ८२०, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 
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Ram