Monday, 22 July 2013

भगवान प्रेम स्वरूप हैं !


      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ शुक्ल, पूर्णिमा, सोमवार, वि० स० २०७०

 
कुछ लोगों की धारणा है की भगवान दण्ड देते है | पर असल में भगवान दण्ड नहीं देते | भगवान प्रेमस्वरूप है | वे स्वाभाविक ही सर्वसुह्रद है | सुहृद होकर किसी को तकलीफ कैसे दे सकते है ? विश्वकल्याण के लिए विश्व का शासन कुछ सनातन नियमों के द्वारा होता है | यदि हम उन नियमों का अनुसरण करके उनके साथ जीवन का सामंजस्य कर लेते है तो हमारा कल्याण होता है; परन्तु यदि हम लापरवाही से या जानबूझ कर उन प्राकृत नियमों का उल्लघन करते है तो हमे तदनुसार उसका बुरा फल भी भोगना पढता है, पर वह भी होता है हमारे कल्याण के लिए ही; क्योकि कल्याणमय भगवान के नियम भी कल्याणकारी है | अत: भगवान किसी को दण्ड नहीं देते, मनुष्य आप ही अपने को दण्ड देता है | भगवान प्रेमस्वरूप है-सर्वथा प्रेम है और वे जो कुछ है, वे ही सबको सर्वदा वितरण कर रहे है !  

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram