Saturday, 10 August 2013

भगवान शिव-७-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, चतुर्थी, शनिवार, वि० स० २०७०

शिवपूजा

 गत ब्लॉग से आगे...जब शिव अनादी है, तब शिव की पूजा को परवर्ती बतलाना सरासर भूल है | परन्तु क्या किया जाय ? वे लोग चार-पांच हज़ार वर्ष से पीछे हटना ही नहीं चाहते | उनके चरों युग इसी काल में पूरे हो जाते है | उनके इतिहास की यही सीमा है |

इससे पहले के काल को तो वे ‘प्रागेतिहसिक युग’ मानते है | मानो उस समय कुछ था ही नहीं और कुछ था तो उसको समझने, जानने या लिखने वाला कोई नहीं था | प्राचीनता को-चारों युगों को चार-पांच हज़ार वर्ष की सीमा में बाधकर वेद, रामायण, महाभारत, पुराण आदि समस्त ग्रन्थों में वर्णित घटनाओं को तथा उनके ग्रन्थों को इसी काल के अन्दर सीमित बनाकर तरह-तरह की अद्भुत अटकलों द्वारा इधर-उधर के कुलाबे मिलाकर मनगढत बातों का प्रचार करते है और इसी का नाम आज नवीन शोध और रिसर्च है |

इस विचित्र रिसर्च के युग में प्राचीनता की बाते सुनना बेफकूफी समझा जाता है | भला बेवकूफी कौन करे ? अत स्वयं बेवकूफी से बचने के लिए पूर्वजों को बेवकूफ बनाना चाहते है |

.कुछ लोग श्रीशिव आदि के स्वरूप और उनकी लीलायें तथा उनकी उपासना-पद्धति का पूरा रहस्य न समझने के कारण उनमे दोष देखते है, फिर इनके रहस्य से सर्वथा अनभिज्ञ विद्धवान माने जाने वाले अन्यदेशीय आधुनिक शिक्षाप्राप्त प्रसिद्ध पुरुष भगवान  के इन स्वरूपों, लीलाओं तथा पूजा-पद्धति का जब उपहास करते है तथा इन्हें मानेवालों को मूर्ख बतलाते है, तब तो इन लोगों को आदर्श विद्वान समझने वाले ऐतदेशीय  उपर्युक्त पुरुषों की दोषदृष्टी और भी बढ़ जाती है और प्रत्यक्षदर्शी तत्वग्य ऋषियों द्वारा रचित इन ग्रन्थों से, इनमे वर्णित घटनाओं से, इनके सिद्दांतों से लज्जा का अनुभव करते हुए, घर में, देश में इन्हें कोसते है और बाहर अपने धर्म तथा देश को लज्जा तथा उपहास से बचाने के लिए उन कथाओं से नये-नये रूपकों की कल्पना कर विदेशी विद्वानों की दृष्टी में अपने धर्म और इतिहास को तथा देव्तावाद को निर्दोष एवं विज्ञानं-सम्मत उच्च दार्शनिक भावों से संपन्न सिद्ध करने का प्रयत्न कर उसके असली तत्व को ढक देते है और इस तरह तत्व से सर्वथा वन्चित रह जाते है | शेष अगले ब्लॉग में... 

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram