|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, पन्चमी, रविवार, वि० स० २०७०
शिवपूजा
गत ब्लॉग से आगे...शास्त्ररहस्य
से अनभिग्न, अतत्वविद आधुनिक विद्वानों की बुद्धि को ही सर्वांश में आदर्श मानकर
उनसे उत्तम कहे जाने के लिए भारतीय विद्वानों ने भारतीय धर्म-ग्रन्थों में वर्णित
तत्व तथा इतिहासों को एवं भगवान की लीलाओं को, अपनी सभ्यता के और ग्रन्थों के गौरव
को बढ़ाने की अच्छी नियत से भी जो सर्वथा उड़ाने तथा उनका बुरी तरह अर्थान्तर करके
और उन्हें समझाने की चेष्टा की है एवं कर रहे है, उसे देखकर रहस्यविद तत्वग्य लोग
हसते है | साथ ही इन लोगों की इस प्रकार की प्रगति का अशुभ परिणाम सोच कर खिन्न भी
होते है | रहस्य खुलने पर ही पता लगता है की हमारे शास्त्रों में वर्णित सब बाते
सत्य है और हमे लजाने वाली नहीं, वरं संसार को ऊँची-से-ऊँची शिक्षा देनेवाली है,
परन्तु इस रहस्य का उद्घाटन भगवत्कृपा के प्राप्त योग्य तत्वज्ञ सद्गुरु की कृपा
से ही हो सकता है |
खेद है की आज कल गुरुमुख से ग्रन्थों का रहस्य जानने की
प्रणाली प्राय: नष्ट होकर अपने-आप ही अध्यन्न और मनमाना अर्थ करने की प्रथा चल पड़ी
है, जिससे रहस्य-मदिर के दरवाजे पर ताले-पर-ताले लगते जा रहे है | पता नहीं, इसके
परिणामस्वरूप हमारा जीवन कितना बहिर्मुख और जड-भावपात्र हो जायेगा | शेष अगले
ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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