|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, षष्ठी, सोमवार, वि० स० २०७०
शिव तामसी देवता नहीं हैं
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इनके अतिरिक्त कुछ लोग भगवान् शिव को तामसी देव मानकर उनकी उपासना करने में दोष
समझते है | वास्तव में यह उनका भ्रम है, जो बाह्य दृष्टी वाले साम्प्रदायिक आग्रही
मनुष्यों का पैदा किया हुआ हैं | जिन
भगवान शिव का गुणगान वेदों, उपनिषदों और वैष्णव कहे जाने वाले पुराणों में भी गया
गया है, उन्हें तामसी बतलाना अपने तमोगुणी होने का परिचय देना है |
परात्पर महाशिव तो सर्वथा गुणातीत है, वहाँ तो गुणों की क्रिया
ही नहीं है | जिस गुणातीत, नित्य, दिव्य, साकार चैतन्य रसविग्रह स्वरुप में क्रिया
है, उसमे भी गुणों का खेल नहीं है | भगवान की दिव्य प्रकृति ही वहाँ क्रिया करती
है और जिन त्रिदेव-मूर्तियों में सत्व, रज और तम की लीलायें होती है, उनमे भी उनका
स्वरुप गुणों की क्रिया के अनुसार नहीं है | भिन्न-भिन्न क्रियाओं के कारण
सत्व-रज, तम का आरोप है | वस्तुत: ये तीनों दिव्य चेतन-विग्रह भी गुणातीत ही है | शेष
अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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