|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, सप्तमी, मंगलवार, वि०
स० २०७०
शिव मोक्षदाता हैं
गत ब्लॉग से आगे...कुछ
लोग भगवान शंकर पर श्रद्धा रखते हैं, उन्हें परमेश्वर मानते है, परन्तु मुक्तिदाता
न मानकर लौकिक फलदाता ही समझते है और प्राय: लौकिक कामनाओं की सिद्धि के लिए ही
उनकी भक्ति या पूजा करते है | इसमें कोई संदेह नहीं है की परम उदार आशुतोष, भगवान
सदाशिव में दया की लीला का विशेष प्रकाश होने के कारण वे भक्तों को मनमानी वस्तु
देने के लिए सदा ही तैयार रहते है, परन्तु इससे इन्हें शिव के स्वरुप का तत्वज्ञान
ही मुक्ति का नामान्तर है, तब उन्हें मुक्तिदाता न मानना सिवा भ्रम के और क्या हो
सकता है ? वास्तव में लौकिक कामनाओं ने हमारा ज्ञान को हर लिया है, इसलिये हम अपने
अज्ञान का परमज्ञानस्वरुप शिव पर आरोप करके उनकी शक्ति को लौकिक कामनाओं की
पूर्तीं तक ही सीमित मान लेते है और शिव की पूजा करके भी अपनी मूर्खतावश परम लाभ
से वन्चित रह जाते है | भगवान शिव शुद्ध, सनातन, विग्यनानान्दघन परब्रह्म है, उनकी
उपासना परम लाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करना चाहिये
| सांसारिक हानि-लाभ प्रारब्धवश होते रहते है, इसके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता
नहीं | शंकर की शरण लेने से कर्म शुभ और
निष्काम हो जायेंगे, जिससे आप ही सांसारिक कष्टों का नाश जायेगा और पूर्वकृत कर्मों
के शेष रहने तक कष्ट होते भी रहे तो क्या आपति है | उनके लिए न तो चिन्ता करनी
चाहिये और न भगवान शंकर से उनके नाशार्थ प्रार्थना ही करनी चाहिये | नाम-रूप से
सम्बन्ध रखनेवाले, आने-जानेवाले सुख-दुखों की भक्त क्यूँ परवाह करने लगा ? शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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