|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, अष्टमी, बुधवार, वि०
स० २०७०
शिव मोक्षदाता हैं
गत ब्लॉग से आगे..लौकिक
सुख का सर्वथा नाश होने पर महान विपति पडने पर भी यदि भगवान का भजन होता रहे तो
भक्त उस विपति को परम सम्पति मनाता है, परन्तु उस सम्पति और सुख का वह मुहँ भी नही
देखना चाहता जो भगवान के भजन को भुला देते है | भजन बिना जीवन, धन, परिवार, यश,
ऐश्वर्य, सभी उसको विषवत भासते है | भक्त को तो सदा देवी पार्वती की भाँती अनन्य
प्रेमभाव से भगवान शिव की उपासना ही करनी चाहिये |
एक बात बहुत ध्यान में रखने की है, भगवान शिव के उपासक में
जगत के भोगों के प्रति वैराग्य अवश्य होना चाहिये | यह निश्चित सिद्धात है की
विषय-भोगों में जिनका चित आसक्त है, वे परम पद के अधिकारी नहीं हो सकते और उनका
पतन होता ही है | ऐन्द्रिय विषयों को
प्राप्त करके अथवा विषयों को प्राप्त करके अथवा विषयों से भरपूर जीवन में रहकर उनसे
सर्वथा निर्लिप्त रहना जनक-सरीखे इने-गिने पूर्वाभ्यास-संपन्न पुरुषों का ही कार्य
है | अनुभव तो यह है की विषयों के सन्ग तो क्या, उनके चिंतनमात्र से मन में विकार
उत्पन्न हो जाते है | शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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