|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, दशमी, शुक्रवार, वि०
स० २०७०
शिव मोक्षदाता हैं
गत ब्लॉग से आगे..औढरदानी
या आशुतोष का यह अर्थ नहीं करना चाहिये की विज्ञानानन्दघन शिवस्वरूप में बुद्धि या
विवेक की कमी है | ऐसा मानना तो प्रकारान्तर से उनका अपमान करना है | बुद्धि या
विवेक के उद्गम स्थान ही भगवान-शिव है | उन्ही से बुद्धि प्राप्त कर समस्त देव,
ऋषि, मनुष्य अपने-अपने कार्यों में लगे रहते है | अलग-अलग रूपों में कुछ अपनी-अपनी
विशेषताए रहती है | शंकररूप में यही विशेषता है की वे बहुत शीघ्र प्रसन्न होते है
और भक्तों की मन:कामना-पूर्ती के समय भोले-से बन जाते है | परन्तु संहार का मौका
आता है तब रूद्र रूप बनते भी उन्हें देर नही लगती |
शिवरूप का रहस्य गहन है
भगवान शंकर को भोलानाथ मानकर ही लोग उन्हें
गंजेड़ी, भंगेड़ी और बावला समझकर उनका उपहास करते है | विनोद से भक्त सब कुछ कर सकते
है और भक्त का आरोप भगवान स्वीकार भी कर ही लेते है | परन्तु जो वस्तुत: शिव को
पागल, श्मशानवासी औघड़, नशेबाज आदि समझते है, वे गहरी भूल में है | शंकर का श्मशान
निवास, उनकी उन्मतता, उनका विष पान, उनका सर्वांगीपन आदि बहुत गहरे रहस्य को लिए
हुए है, जिसे शिव कृपा से शिव-भक्त ही समझ सकते है |
जैसे व्यभिचारप्रिय लोग भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला को
व्यभिचार का रूप देकर प्रकारान्तर से अपने पापमय, व्यभिचार-दोष का समर्थन करते है,
इसी प्रकार सदचारहीन, अवैदिक क्रियाओं में रत नशेबाज मनुष्य शिव के अनुकरण को ढोंग
रचकर अपने दोषों का समर्थन करना चाहते है | शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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