|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, एकादशी, शनिवार, वि० स० २०७०
शिव मोक्षदाता हैं
गत ब्लॉग से आगे.......वस्तुत:
शिवभक्त को सदाचार परायण रहकर गांजा, भांग, मतवालापन, अपवित्र वस्तुओं के सेवन,
अपवित्र आचरण आदि से सदा बचते रहना चाहिये : यही शंकर का आदेश है |
कल्याणरूप शिव
भगवान शिव को परात्पर मानकर सेवन करनेवाले के लिए तो वे
परब्रह्म है ही | अन्यान्य भगवत-स्वरूपों के उपासकों के लिए, जो शिवस्वरुप को
परब्रह्म नहीं मानते, भगवान शिव मार्गदर्शक परमगुरु अवश्य है | भगवान विष्णु के
भक्त के लिए भी सदगुरुरूप से शिव की उपासना आवश्यक है | वैष्णव ग्रन्थों में इसका
यथेस्ट उल्लेख है और साधकों का अनुभव भी प्रमाण है | शक्ति के उपासक शक्तिमान शिव
को छोड़ ही कैसे सकते है ? शिव बिना शक्ति अकेली क्या करेगी? गणेश और कार्तिकेय तो
शिव के पुत्र ही है | पुत्र को पूजे और पिता का आपमान करे, यह सिष्ट मर्यादा कभी
नहीं हो सकती | सूर्यदेव तो भगवान शिव के तेजोलिंग के ही नामान्तर है | इसके सिवा
अन्यान्य मतावलम्बियों के लिए भी कम-से-कम श्रद्धा विश्वासरूप शक्ति-शिव की
आवश्यकता रहती ही है | योगिओं के लिए तो परमयोगीश्वर शिव की आराधना की आवश्यकता है
ही |
ज्ञान के साधक परमकल्याण रूप शिव की ही प्राप्ति चाहते है |
न्याय, वैशेषिक आदि दर्शन भी शिवविद्या के ही प्रचारक है | तंत्र तो शिवोपासना के
लिए ही बना है | ऐसी अवस्था में जिस किसी भी दृष्टी से शिव को परमात्मा,
महाज्ञानी, महान विद्वान, योगीश्वर, देवदेव, जगद्गुरुं, सद्गुरु, महान उपदेशक,
उत्पादक, संहाकारक कुछ भी मान कर उनकी उपासना
करना सबके लिए कर्तव्य है | और सुख कल्याण की इच्छा स्वाभाविक होने के कारण
प्रत्येक जीव कल्याणरूप शिव की ही उपासना करता है | शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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