Sunday, 18 August 2013

भगवान शिव-१५-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०७०

 

लिंग-शब्द का अर्थ

 

 गत ब्लॉग से आगे.........कुछ लोग भगवान् शिव की लिंगपूजा में अश्लीलता की कल्पना करते है, यह वास्तव में उनकी मूर्खता, नास्तिकता और अनभिज्ञता ही है | यह सत्य है की लिंग-शब्द के अनेक अर्थों मं लोकप्रसिद्ध अर्थ अश्लील है, परन्तु वैदिक शब्दों का यौगिक अर्थ लेना ही समाचीन है | यौगिक अर्थ में कोई अश्लीलता नहीं रह जाती | इसके अतिरिक्त यह बात भी है की अश्लीलता प्रसंग से ही आती है | विषयात्मक वर्णन में भी जो अश्लील या अनुचित प्रतीत होता है, वही वैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक वर्णनों में श्लील तथा सर्वथा समुचित हो जाता है |

लिंग-शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह या लक्षण है | सांख्यदर्शन में प्रकृति को, प्रकृतिसे विकृति को भी लिंग कहते हैं | देव-चिन्ह के अर्थ में लिंग-शब्द भगवान् शंकर की लिंगमूर्ती के लिए आता है | अन्य देवप्रतिमाओं को मूर्ती कहते है | यह असल में अरूप का चिन्ह है | दूसरों का आकर मूर्तिमान के ध्यान के अनुसार होता है, परतु इसमें आकार या रूप का प्रदर्शन नहीं है | यह चिन्ह मात्र है | कोई-कोई इसे परमात्मा की दिव्य ज्योति का द्योतक स्वरुप मानते है, इसलिये ज्योतिर्लिंग भी नाम है | एक जगह ‘लयनाल्लीङ्गमुच्य्ते’ कहा है अर्थात लय या प्रलय होता है उसे लिंग कहते है | भगवान रूद्र ही प्रलय करते है, संघार के देवता वही है | प्रलय के समय सब कुछ उनमे  शिवलिंग में समां जाता है और फिर सृष्टी के आदि में पुन: लिंग से ही सब कुछ प्रगट होता है | इसलिए लय से लिंग-शब्द का उदय माना गया है | उसी से लय या प्रलय होता है और उसी में सम्पूर्ण विश्व का लय होता है |

भगवान् शिव निर्विकार है, इसलिये चिन्हमात्र ही उनका स्वरुप है | भगवान् शिव का कारण स्वरुप निराकार है, अत: शिवलिंग भी किसी विशेष आकृति से रहित है, जैसे शालग्राम  शिला है | साथ ही सारे जगत के कर्ता, विधाता, उत्पति-स्थल भी भगवान शिव ही है | देवीपीठ तथा शिवलिंग से इस सिद्धांत की भी सूचना होती है | लिंग का एक अर्थ है ‘कारण’ | भगवान शिव समस्त जगत के कारण है, अत: कारणवाचक लिंग के नाम से उनका पूजन होता है | अत: इससे अश्लीलता की कल्पना किसी भी दृष्टी से कदापि नहीं करनी चाहिये और भगवान् शंकर की भक्तिभाव से शास्त्रानुमोदित पूजा-अर्चा करनी चाहिये | शेष अगले ब्लॉग में... 

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    

 
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