|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०७०
लिंग-शब्द का अर्थ
गत ब्लॉग से आगे.........कुछ
लोग भगवान् शिव की लिंगपूजा में अश्लीलता की कल्पना करते है, यह वास्तव में उनकी
मूर्खता, नास्तिकता और अनभिज्ञता ही है | यह सत्य है की लिंग-शब्द के अनेक अर्थों
मं लोकप्रसिद्ध अर्थ अश्लील है, परन्तु वैदिक शब्दों का यौगिक अर्थ लेना ही समाचीन
है | यौगिक अर्थ में कोई अश्लीलता नहीं रह जाती | इसके अतिरिक्त यह बात भी है की
अश्लीलता प्रसंग से ही आती है | विषयात्मक वर्णन में भी जो अश्लील या अनुचित
प्रतीत होता है, वही वैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक वर्णनों में श्लील तथा सर्वथा
समुचित हो जाता है |
लिंग-शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह या लक्षण है | सांख्यदर्शन
में प्रकृति को, प्रकृतिसे विकृति को भी लिंग कहते हैं | देव-चिन्ह के अर्थ में
लिंग-शब्द भगवान् शंकर की लिंगमूर्ती के लिए आता है | अन्य देवप्रतिमाओं को मूर्ती
कहते है | यह असल में अरूप का चिन्ह है | दूसरों का आकर मूर्तिमान के ध्यान के
अनुसार होता है, परतु इसमें आकार या रूप का प्रदर्शन नहीं है | यह चिन्ह मात्र है
| कोई-कोई इसे परमात्मा की दिव्य ज्योति का द्योतक स्वरुप मानते है, इसलिये ज्योतिर्लिंग
भी नाम है | एक जगह ‘लयनाल्लीङ्गमुच्य्ते’ कहा है अर्थात लय या प्रलय होता है उसे लिंग कहते है |
भगवान रूद्र ही प्रलय करते है, संघार के देवता वही है | प्रलय के समय सब कुछ
उनमे शिवलिंग में समां जाता है और फिर
सृष्टी के आदि में पुन: लिंग से ही सब कुछ प्रगट होता है | इसलिए लय से लिंग-शब्द
का उदय माना गया है | उसी से लय या प्रलय होता है और उसी में सम्पूर्ण विश्व का लय
होता है |
भगवान् शिव निर्विकार है, इसलिये चिन्हमात्र ही उनका स्वरुप
है | भगवान् शिव का कारण स्वरुप निराकार है, अत: शिवलिंग भी किसी विशेष आकृति से
रहित है, जैसे शालग्राम शिला है | साथ ही
सारे जगत के कर्ता, विधाता, उत्पति-स्थल भी भगवान शिव ही है | देवीपीठ तथा शिवलिंग
से इस सिद्धांत की भी सूचना होती है | लिंग का एक अर्थ है ‘कारण’ | भगवान शिव
समस्त जगत के कारण है, अत: कारणवाचक लिंग के नाम से उनका पूजन होता है | अत: इससे
अश्लीलता की कल्पना किसी भी दृष्टी से कदापि नहीं करनी चाहिये और भगवान् शंकर की
भक्तिभाव से शास्त्रानुमोदित पूजा-अर्चा करनी चाहिये | शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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