|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, त्रयोदशी, सोमवार,
वि० स० २०७०
शिवनिर्माल्य
गत ब्लॉग से आगे......भगवान्
शंकर पर चढ़ायी हुई वस्तु ग्रहण करनी चाहिये या नहीं, इस सम्बन्ध में तरह-तरह की
बातें कही जाती है | सिद्धान्त यह है की जिन पुरुषों ने शिव-मन्त्र की दीक्षा ली
है, उनके लिए तो शिवजी का नैवेद्य-प्रसाद लेने की विधि है, परन्तु जिनके अन्य
देवताकी दीक्षा है, उनके लिए निषेध है | शास्त्र में कहा गया है की शिवजी पर जो
निर्माल्य या नैवेद्य चढ़ता है, वह चण्डेश्वर का भाग है, उसका ग्रहण किसी को नहीं
करना चाहिये (शिवपुराण-विद्येश्वरसहिंता २२|१६) अर्थात ‘जहाँ चण्डका अधिकार है
वहाँ मनुष्य को शिवनैवेद्य का भक्षण नहीं करना चाहिये |’ परन्तु वहीँ इसी श्लोक
में यह भी कहा है की जिसमे चण्ड का अधिकार नहीं है, उसका भक्तिपूर्वक भक्षण करना
चाहिये | शास्त्रों में यह निर्णय किया गया है की भूमि, वस्त्र, भूषण, सोना,
चांदी, तांबा आदि को छोड़कर श्रीशिव जी पर चढ़े हुए पुष्प, फल, मिस्ठान, जल इन सबको,
जो शिव दीक्षा से रहित है, उसको ग्रहण नहीं करना चाहिये | पर ये भी यदि शालग्रामजी
से स्पर्श हो जाय तो ग्रहण के योग्य हो जाता है | इसलिए जहाँ शालग्रामशिला की
उत्पत्ति होती है वहाँ उत्पन्न लिंग में, पारे के लिंग में, पाषण, चांदी या सोने
से बने हुए लिंग में, स्फटिक या रत्ननिर्मित लिंग में, केसर से बने हुए लिंग में
तथा सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकाल, परमेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वनाथ,
त्रयम्बक, वैधनाथ, नागेश, रामेश्वर और घुस्मेश्वर
- इन बारह ज्योतिर्लिंगों में चढ़ा हुआ शिव-नैवैध ग्रहण करने योग्य होता है
|जिनको शैवी दीक्षा नहीं है, वे भी उपर्युक्त लिंगों के नैवैध को ग्रहण कर सकते
है, क्योकि इन लिंगों के निर्माल्य में चण्ड का अधिकार नहीं है |
सारांश यह है की जिनको शिवदीक्षा नहीं है, परतु जो शिव जी
के भक्त है उनके लिए पार्थिव लिंग को छोड़कर सभी शिवलिंगो पर निवेदित की हुई वस्तुओं
को तथा शिवजी की प्रतिमा पर चढ़ाये हुए प्रसाद को ग्रहण करने का अधिकार है | और जो
वस्तुए शिवलिंग का स्पर्श नहीं करती अलग रखकर शिवजी को निवेदन की जाती है, वे
अत्यन्त पवित्र है, उन्हें भी ग्रहण करने का अधिकार है | शिवजी की पूजा में नारी
तथा शुद्र सभी का अधिकार है, उन्हें केवल वैदिक पूजा नहीं करनी चाहिये |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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