Friday, 2 August 2013

भोजन-साधन -२-


      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण कृष्ण, एकादशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 
गत ब्लॉग से आगे..भगवान या अपने इष्टदेव को अर्पण करके खाओं | जो भगवान को निवेदन न करके खाता है, वह गन्दी चीज खाता है |

झूठन मत छोड़ो | बिना भूख लगे मत खाओं, जितना आसानी से पचा सकों उतना ही खाओं |

तुम्हारा खाना जिसको भार मालूम होता हो, उसके घर न खाओं | तुम्हारे खाने से जिसके भोजन में कमी आ जाती है, उसके यहाँ भी माँ खाओं |

भोजन करने से पहले अन्न को प्रणाम करों, भोजन के समय ध्यान करों की यह पवित्र भोजन मुझकों पवित्र करेगा, बल देगा, ओज देगा और भगवान की भक्ति देगा | और प्रत्येक ग्रास भगवान का स्मरण करके मुहँ में लों |

भोजन को अन्तर्यामी भगवान की तृप्ति के लिए करों, यज्ञ की भावना से करों-जीभ के स्वाद या अपनी तृप्ति के लिए नहीं |

बहुत मसाले, खट्टी, चटपटी, बहुत मिठाई आदि न खाओं |

सबको बाट कर खाओं, चुराकर न खाओं | शेष अगले ब्लॉग में...

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram