Wednesday, 21 August 2013

विषय और भगवान -२-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, पूर्णिमा, बुधवार, वि० स० २०७०

 
गत ब्लॉग से आगे.....सारा संसार इसी अभाव के फेर में पड़ा हुआ है | अच्छे=अच्छे विद्वान, बुद्धिमान और चिन्ताशील पुरुष इस अभाव की पूर्ती के लिए ही चिन्तामग्न है | युग बीत गए, नाना प्रकार के नवीन-नवीन औपाधिक आविष्कार हुए और रोज-रोज हो रहे है; परन्तु यह अभाव ऐसा अनन्त है की इसका कभी शेष होता ही नहीं | बड़ी कठिनता से, बड़े पुरुषार्थ से, बड़े भारी त्याग और अध्ययन से मनुष्य एक अभाव को मिटाता है, तत्काल ही दूसरा अभाव ह्रदय में न मालूम  कहाँ से आकर प्रगट हो जाता है |  यों एक-एक अभाव को दूर करने में केवल एक जीवन ही नहीं, न मालूम कितने जन्म बीत गए है, बीत रहे है और अभाव में जड न कटनेतक बीतते ही रहेंगे | कलमी पेड़ की डालों को काटने से वह और भी अधिक फैलता है, इसी प्रकार एक विषय की कामना पूरी होते ही-उसके कटते ही न मालूम कितनी ही नयी कामनाएँ और जाग उठती है | किसी कंगाल को राज्य पाने की कामना है, वह उसकी प्राप्ति के लिए न मालूम कितने जप, तप, विद्या, बुद्धि, बल, परिश्रम आदि का प्रयोग करता है | उसे कर्म सफलता के रूप में यदि राज्य मिल जाता है तो राज्य मिलते ही अनेक प्रकार की आवश्यकताये उत्पन्न हो जाती है, जिसका वह पहले विचार भी नहीं कर सकता था | अब उन्ही आवश्यकता की पूर्तिकी कामना होती है और वह फिर वैसा ही दुखी बन जाता है |
शेष अगले ब्लॉग में....         

   श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram