|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण, प्रतिपदा, गुरूवार,
वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे.....इसलिए आवश्यकता ही अभाव की जड काटकर ऐसी वस्तुको प्राप्त करने
की जो नित्य, पूर्ण, सत् और सर्वभावशून्य हो, जिसे पाकर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता
है,आप्तकाम और पूर्णकाम हो जाता है, अभाव की आग सदा के लिय बुझ जाती है | यह सत्
और पूर्ण वस्तु केवल परमात्मा है, परन्तु उस परमात्मा की प्राप्ति तब तक नहीं
होती, जब तक जगतके विषयों का मोह त्यागकर मनुष्य परमात्मा को पाने की लिए एकान्त
इच्छुक नहीं हो जाता | जो इस परम वस्तु को पाने के लिए व्याकुल हो उठता है, उसके
ह्रदय से भोगों की शक्ति नष्ट हो ही जाती है, क्योकि जहाँ भगवान का प्रेम रहता है,
वहाँ भोग-कामना उसी प्रकार नहीं ठहर सकती जिस प्रकार सूर्य के सामने अन्धकार नहीं
ठहरता |
जो चाहौ हरि मिलनकौ, तजो विषय विष मान |
हिय में बसै न एक संग, भोग और भगवान ||
जिन्हें भगवान से मिलने की चाह है उन्हें और समस्त इच्छाओं
की जड बिलकुल काट डालनी पड़ेगी | परन्तु सब जड बड़ी मजबूत है, केवल बातों से उसका
काटना सम्भव नहीं, उसके काटने के लिए वैराग्य रुपी दृढ शास्त्र की आवश्यकता है |
विषय-वैराग्य हुए बिना कामना का नाश नहीं होता | इसके लिए बड़े ही प्रयत्न की
आवश्यकता है | तनिक से प्रयत्न में घबरा जाने से काम नहीं चलेगा | जब संसार के
साधारण नाशवान पदार्थों को पाने के लिए मनुष्य को बहुत से त्याग करने पडते है, तब
अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति के लिए तो विनाशी वस्तुमात्र का त्याग कर देना
आवश्यक है ही |
शेष अगले ब्लॉग में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण
!!! नारायण !!! नारायण !!!
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