|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण, अष्टमी, बुधवार, वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे.....त्याग मन से ही होना चाहिये | परन्तु जो लोग मन से त्याग नहीं
करते, जिनके अहंकार और ममत्व की बीमारी बढ़ी हुई होती है, उन्ही के लिए भगवान्
कृपाकर उपर्युक्त दिव्यऔषधि की व्यवस्था कर उन्हें रोग से छुड़ाते है |
अतएव भगवान् के विधान किये हुए प्रत्येक फल में मनुष्य को
आनन्द का अनुभव होना चाहिये | जो हमारे पर पिता हैं, परम सुहृद है, परम सखा है,
परम आत्मीय है, उनकी प्रेमभरी देनपर जो मनुष्य मन मैला करता है, वह प्रेमी कहाँ
है, वह परमात्मा की प्राप्ति का साधक कहाँ है, वह तो भोगों का गुलाम और काम का दास
है | ऐसे मनुष्य को नित्य, परमसुख रूप, समस्त अभावो का सदा के लिए अभाव करदेने
वाले ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती | इसलिए प्रत्येक कष्ट
और विपत्ति को भगवान के आशीर्वाद के रूप में सिर चढ़ाना चाहिये और सब विषयों से मन
हटाकर सच्ची लगन से एक चित से उस परम सुहृदय परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयत्न
करना चाहिये | शेष अगले ब्लॉग में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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