Saturday, 3 August 2013

भोजन-साधन -३-


      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण कृष्ण, द्वादशी, शनिवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे....पक्तिं में भेद न करों, अपने लिए बढ़िया लेकर दूसरों को घटिया चीज मत दो  |

रोज स्नान, संध्या, तर्पण, श्राद्ध और बलिवैश्वदेवआदि करने के बाद भोजन करों |

भोजन के समय मौन रहों |

ताब़े के बर्तन में दूध न पीओं, जूंठे बर्तन में घी लेकर न खाओं और दूध के साथ कभी नमक न खाओं |

भोजन खूब चबाकर करों, बहुत जल्दी-जल्दी न खाओं |

पूर्व की और मुख करके भोजन करों, पश्चिम और दक्षिण की और मुख करके भोजन करना भी बुरा नहीं है | जिसके माता-पिता जीवित हो वह दक्षिण की और मुख करके भोजन न करे | उत्तर की और मुह करके भोजन नहीं करना चाहिये |

दोनों हाथ, दोनों पैर और मुहँ को पहले खूब धोकर भोजन करों | भोजन के बाद हाथ-मुहँ धोना, कुल्ला करके मुहँ साफ़ करना, दांतों में लगे हुए अन्न को निकाल कर फिर मुहँ धोना चाहिये | भोजन के बाद मुहँ साफ़ करने के लिए पान खाना बुरा नहीं है |

एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि के दिन उपवास करों |    

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram