|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण कृष्ण, त्रयोदशी, रविवार,
वि० स० २०७०
भगवान
शिव-१-
परात्पर सच्चिदानंद परमेश्वर शिव एक है; वे विश्वातीत है और
विश्वमय भी है | वे गुणातीत है और गुणमय भी है | वे एक ही है और अनेक रूप बने हुए है
| वे जब अपने विस्ताररहित अद्वितीय स्वरुप में स्थित रहते है, तब मानों यह विविध
विलासमयी असंख्य रूपों वाली विश्वरूप जादू के खेल की जननी प्रकृति देवी उनमे विलीन
रहती है | यही शक्ति की शक्तिमान में अक्रिय, अव्यक्त स्थिति है-शक्ति है, परन्तु
वह दीखती नहीं है और बाह्य क्रियारहित है | पुन: जब वाही शिव अपनी शक्ति को व्यक्त
और क्रियान्विता करते है, तब वह क्रीडामयीशक्ति-प्रकृति शिव को ही विविध रूपों में
प्रगट कर उनके खेल का साधन उत्पन्न करती है | एक ही देव विविध रूप धारणकर अपने-आप
ही अपने-आपसे खेलते है | यही विश्व का विकास है | यहाँ शिव-शक्ति दोनों की लीला
चलती चलती है | शक्ति क्रियान्विता होकर शक्तिमान के साथ तब प्रयत्क्ष-प्रगट विलास
करती है | यही परात्पर परमेश्वर शिव, महाशिव, महाविष्णु, महाशक्ति, गोकुल-विहारी
श्री कृष्ण, साकेताधीपति श्री राम आदि नाम-रूपों से प्रसिद्ध है | शेष अगले ब्लॉग
में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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