|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण कृष्ण, अमावस्या, मंगलवार,
वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे....यह नहीं समझना चाहिये की परात्पर महाशिव
परब्रह्म के ये भिन्न-भिन्न रूप काल्पनिक है | सभी रूप भगवान के होने के कारण
नित्य, शुद्ध और दिव्य है | प्रकृति के द्वारा रचे जाने वाले विश्वप्रपन्न्च के विनाश होने पर भी इनका विनाश नहीं होता;
क्योकि ये प्रकृति की सता से परे स्वयम प्रभु परमात्मा की स्वरुप है | जैसे
परमात्मा का निराकार रूप प्रकृति से प्रे नित्य निर्विकार है, इसी प्रकार उनके ये
साकार रूप भी प्रकृति से परे नित्य निर्विकार है | अंतर इतना ही है की निराकार रूप
कभी शक्ति को अपने अन्दर विलींन किये रहता है की उसके अस्तित्व का पता नहीं लगता
और कभी निराकार रहते हुए ही शक्ति को विकासोन्मुखी करके गुणसंपन्न बन जाता है;
परन्तु साकार रूप में शक्ति सदा ही जाग्रत,विकसित और सेवा में नियुक्त रहती है |
हाँ,कभी कभी वह भी अन्त:पुर की महारानी के सद्र्श बाहार
सर्वथा अप्रकट-सी रहकर प्रभु के साथ क्रीडारत रहती है और कभी बाह्य लीला में प्रगट हो जाती है, यही नित्यधाम की
लीला और अवतार लीला का तारतम्य है | शेष
अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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