Wednesday, 7 August 2013

भगवान शिव-४-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, प्रतिपदा, बुधवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे....नित्यधाम के शिव-शक्ति, विष्णु-लक्ष्मी, ब्रह्मा-सावित्री, कृष्णा-राधा और राम-सीता ही समय-समय पर अवताररूप से प्रगट होकर बाह्य लीला करते है | ये सब एक ही परम तत्व के अनेक नित्य और दिव्य स्वरूप है | अवतारों में, कभी तो परात्पर स्वयं अवतार लेते है और कभी सीमित शक्ति से कार्य करने वाले त्रिदेवों में से किसी का अवतार होता है | जहाँ दण्ड और मोह की लीला होती है, वहाँ दण्डित और मोहित होने वाले अवतारों को त्रिदेवों में से, तथा दण्डदाता और मोह उत्पन्न करने वाले को परात्पर प्रभु समझना चाहिये, जैसे नरसिंहरूप को शरभरूप के द्वारा दण्ड दिया जाना और शिवरूप का  विष्णुद्वारा मोहिनी रूप से मोहित होना आदि |

कहीं कहीं परात्पर साक्षात् अवतारों में भी ऐसी लीला देखि जाती है, परन्तु उसका गूढ़ रहस्य कुछ और ही होता है जो उनकी कृपा से ही समझ में आ सकता है | शेष अगले ब्लॉग में... 

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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