Thursday, 8 August 2013

भगवान शिव-५-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, द्वितीया, गुरूवार, वि० स० २०७०

शिव के रूप कल्पना नहीं है

 
गत ब्लॉग से आगे....आज श्रीशिव स्वरुप की कुछ चर्चा करके लेखनी को पवित्र करना है | कुछ लोगो को अनुभवहीन समझ, सूझ या कल्पना है की भगवान शिव का साकार स्वरुप कल्पनामात्र है | उनके एकमुख, पंचमुख, सर्पभूषित, नीलकंठ, मदनदहन, वृषभ, कार्तिकेय, गणेश आदि सभी काल्पनिक रूपक है | इसलिए इन्हें वास्तविक न मानकर रूपक ही समझना चाहिये | परन्तु वास्तव में ऐसी बात नहीं है | ये सभी सत्य है | जिन भक्तों ने भगवान श्रीशिव की कृपा से इन रूपों और लीलाओं को देखा है या जो आज भी भगवत्कृपा से प्राप्त साधन-बल से देख सकते है अथवा देखते है तथा साक्षात् अनुभव करते है, वे ही इस तत्व को समझते है और उन्हीं का बात का वस्तुत: कुछ मूल्य है |

उल्लू को सूर्य नहीं दीखता इसे जैसे सूर्य के अस्तित्व में कोई बाधा नहीं आती, इसी प्रकार किसी के मानने-न-मानने से भगवतस्वरुप का कुछ भी बनता बिगड़ता नहीं | हाँ, मानने वाला लाभ उठाता है और न मानने वाला हानि | एक बात ध्यान में रखनी चाहिये की भगवान की प्रत्येक लीला वास्तव में इसी प्रकार की होती है, जिससे पूरा-पूरा अध्यात्मिक रूपक भी बंध सके; क्योकि वे जगत की शिक्षा के लिए ही अपने नित्य-स्वरुप को धरातल में प्रगट करके लीला-किया करते है | वेद, महाभारत, भागवत, विष्णुपुराण, शिवपुराण आदि सभी ग्रन्थों में वर्णित भगवान की लीलाओं के रूपक बन जाते है | परन्तु रूपक ठीक बैठ जाने से ही असली स्वरुप को काल्पनिक मान लेना वैसी ही भूल है जैसी पिता के छायाचित्र (फोटो) को देखकर उसके अस्तित्व को न मानना | शेष अगले ब्लॉग में... 

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram