|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, द्वितीया, गुरूवार,
वि० स० २०७०
शिव के रूप कल्पना नहीं है
गत ब्लॉग से आगे....आज श्रीशिव स्वरुप की कुछ चर्चा करके
लेखनी को पवित्र करना है | कुछ लोगो को अनुभवहीन समझ, सूझ या कल्पना है की भगवान
शिव का साकार स्वरुप कल्पनामात्र है | उनके एकमुख, पंचमुख, सर्पभूषित, नीलकंठ,
मदनदहन, वृषभ, कार्तिकेय, गणेश आदि सभी काल्पनिक रूपक है | इसलिए इन्हें वास्तविक
न मानकर रूपक ही समझना चाहिये | परन्तु वास्तव में ऐसी बात नहीं है | ये सभी सत्य
है | जिन भक्तों ने भगवान श्रीशिव की कृपा से इन रूपों और लीलाओं को देखा है या जो
आज भी भगवत्कृपा से प्राप्त साधन-बल से देख सकते है अथवा देखते है तथा साक्षात्
अनुभव करते है, वे ही इस तत्व को समझते है और उन्हीं का बात का वस्तुत: कुछ मूल्य
है |
उल्लू को सूर्य नहीं दीखता इसे जैसे सूर्य के अस्तित्व में
कोई बाधा नहीं आती, इसी प्रकार किसी के मानने-न-मानने से भगवतस्वरुप का कुछ भी
बनता बिगड़ता नहीं | हाँ, मानने वाला लाभ उठाता है और न मानने वाला हानि | एक बात
ध्यान में रखनी चाहिये की भगवान की प्रत्येक लीला वास्तव में इसी प्रकार की होती
है, जिससे पूरा-पूरा अध्यात्मिक रूपक भी बंध सके; क्योकि वे जगत की शिक्षा के लिए
ही अपने नित्य-स्वरुप को धरातल में प्रगट करके लीला-किया करते है | वेद, महाभारत,
भागवत, विष्णुपुराण, शिवपुराण आदि सभी ग्रन्थों में वर्णित भगवान की लीलाओं के
रूपक बन जाते है | परन्तु रूपक ठीक बैठ जाने से ही असली स्वरुप को काल्पनिक मान
लेना वैसी ही भूल है जैसी पिता के छायाचित्र (फोटो) को देखकर उसके अस्तित्व को न
मानना | शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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