Friday, 9 August 2013

भगवान शिव-६-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, तृतीया, शुक्रवार, वि० स० २०७०

शिवपूजा

 गत ब्लॉग से आगे.... कुछ लोग कहते है की शिव-पूजा अनार्यों की चीज हैं, पीछे से आर्यों में प्रचलित हो गयी | इस कथन का आधार है वह मिथ्या कल्पना या अन्धविश्वास, जिसके बल पर यह कहा जाता है की ‘आर्य जाति भारतवर्ष में पहले से नहीं बसती थी | पहले यहाँ अनार्य रहते थे | आर्य पीछे से आये |’ दो-चार विदेशी लोगों ने अटकलपच्चू ऐसा कह दिया ; बस, उसी को  ब्रह्मवाक्य मानकर लगे सब उन्ही का अनुसरण करने ! शिव-पूजा के प्रमाण अब उस समय के भी मिल गए है, जिस समय इन लोगों के मत में आर्य-जाति यहाँ नहीं आई थी | इसलिए इन्हें यह कहना पड़ा की शिव पूजा अनार्यों की है | जो भ्रान्तिवश वेदों के निर्माण-काल को केवल चार हज़ार वर्ष पूर्व का ही मानते है, उनके लिए ऐसा समझना स्वाभाविक है, परन्तु वास्तव में यह बात नहीं है |

भारतवर्ष निश्चय ही आर्यों का मूल निवास है और शिव-पूजा अनादी काल से ही प्रचलित है; क्योकि सारा विश्व शिव से ही उत्पन्न है, शिव में स्थित है और शिव में ही विलीन होता है | शिव ही इसको उत्पन्न करते है, शिव ही इसका पालन करते है और शिव ही संघार करते है | विभिन्न कार्यों के लिए ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र ये तीन नाम है | शेष अगले ब्लॉग में... 

  श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram