|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण शुक्ल, तृतीया, शुक्रवार,
वि० स० २०७०
शिवपूजा
गत ब्लॉग से आगे....
कुछ लोग कहते है की शिव-पूजा अनार्यों की चीज हैं, पीछे से आर्यों में प्रचलित हो
गयी | इस कथन का आधार है वह मिथ्या कल्पना या अन्धविश्वास, जिसके बल पर यह कहा
जाता है की ‘आर्य जाति भारतवर्ष में पहले से नहीं बसती थी | पहले यहाँ अनार्य रहते
थे | आर्य पीछे से आये |’ दो-चार विदेशी लोगों ने अटकलपच्चू ऐसा कह दिया ; बस, उसी
को ब्रह्मवाक्य मानकर लगे सब उन्ही का
अनुसरण करने ! शिव-पूजा के प्रमाण अब उस समय के भी मिल गए है, जिस समय इन लोगों के
मत में आर्य-जाति यहाँ नहीं आई थी | इसलिए इन्हें यह कहना पड़ा की शिव पूजा
अनार्यों की है | जो भ्रान्तिवश वेदों के निर्माण-काल को केवल चार हज़ार वर्ष पूर्व
का ही मानते है, उनके लिए ऐसा समझना स्वाभाविक है, परन्तु वास्तव में यह बात नहीं
है |
भारतवर्ष निश्चय ही आर्यों का मूल निवास है और शिव-पूजा
अनादी काल से ही प्रचलित है; क्योकि सारा विश्व शिव से ही उत्पन्न है, शिव में
स्थित है और शिव में ही विलीन होता है | शिव ही इसको उत्पन्न करते है, शिव ही इसका
पालन करते है और शिव ही संघार करते है | विभिन्न कार्यों के लिए ब्रह्मा, विष्णु,
रूद्र ये तीन नाम है | शेष अगले ब्लॉग में...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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