Sunday, 1 September 2013

आज का भ्रष्टाचार और उससे बचने के उपाय -३-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद कृष्ण, एकादशी, रविवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे.. ...चोर-बाजारी, घूसखोरी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता लोगो के स्वभावगत हो गयी है | सभी मानों बेईमानी का बाजार सजाये, एक दुसरे को लूटने, ठगने और उसका जड काटने के लिए तैयार बैठे है | ऐसे बहुत थोड़े लोग होंगे, जिनकी इमानदारी में विश्वास किया जा सके | नये-नये कानून बनते है और बेईमानी के नये-नये रास्ते निकलते जाते है | इसका कारण यही है की जिनको कानून मानना है और जिनके जिम्मे उसको मनवाना है, वे दोनों ही इमानदार नहीं है | दोनों ही मिले हुए है | ऊपर से एक-दुसरे को बेईमान बतलाते हुए भी दोनों नये-नये तरीकों से बेइमानी बढ़ाने में लगे है | अफसर एवं राजकर्मचारी कहते है व्यापारी चोर है,इनको दण्डं होना चाहिये ; और व्यापारी अफसरों, अधिकारियों और राजकर्मचारियों की खुलेआम चोरी तथा बेईमानी देखते है | चोरी और बेईमानी कैसे बंद हो !    

एक युग था, जिसमे लोगों का यह विश्वास था की सर्वव्यापी सर्वात्यामी भगवान् सदा-सर्वदा सर्वत्र है | वे हमारी प्रत्येक क्रिया को देखते है | हम एकान्त में कोई पाप करते है, मन में भी पाप भावना करते है तो उसे भी भगवान् जानते-देखते है | इसलिए उनमे भगवान से संकोच था | भगवान के भय से लोग बुरा करने से डरते थे | शेष अगले ब्लॉग में ....

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram