|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण, एकादशी, रविवार, वि० स० २०७०
गत
ब्लॉग से आगे.. ...चोर-बाजारी, घूसखोरी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता लोगो के स्वभावगत हो
गयी है | सभी मानों बेईमानी का बाजार सजाये, एक दुसरे को लूटने, ठगने और उसका जड काटने
के लिए तैयार बैठे है | ऐसे बहुत थोड़े लोग होंगे, जिनकी इमानदारी में विश्वास किया
जा सके | नये-नये कानून बनते है और बेईमानी के नये-नये रास्ते निकलते जाते है |
इसका कारण यही है की जिनको कानून मानना है और जिनके जिम्मे उसको मनवाना है, वे
दोनों ही इमानदार नहीं है | दोनों ही मिले हुए है | ऊपर से एक-दुसरे को बेईमान
बतलाते हुए भी दोनों नये-नये तरीकों से बेइमानी बढ़ाने में लगे है | अफसर एवं
राजकर्मचारी कहते है व्यापारी चोर है,इनको दण्डं होना चाहिये ; और व्यापारी
अफसरों, अधिकारियों और राजकर्मचारियों की खुलेआम चोरी तथा बेईमानी देखते है | चोरी और बेईमानी कैसे बंद हो !
एक युग था, जिसमे लोगों का यह विश्वास था की सर्वव्यापी
सर्वात्यामी भगवान् सदा-सर्वदा सर्वत्र है | वे हमारी प्रत्येक क्रिया को देखते है
| हम एकान्त में कोई पाप करते है, मन में भी पाप भावना करते है तो उसे भी भगवान्
जानते-देखते है | इसलिए उनमे भगवान से संकोच था | भगवान के भय से लोग बुरा करने से
डरते थे | शेष अगले ब्लॉग में ....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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