Tuesday, 10 September 2013

नारी-निन्दा की सार्थकता -६-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद शुक्ल, पन्चमी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे.....नारीमें इतना आकर्षण है की साधनसंलग्न तपस्वी, वनवासी ऋषि, महर्षि, राजर्षि तथा देवर्षि भी नारी-संसर्ग में आकर अपनी साधनाकी रक्षा नहीं कर पाये | विश्वामित्र, दुर्वासा, सौभरी, नारद आदि इसके उदाहरण है | इसलिए विषयों में दुखरूप दोषों को देखकर या उनमे दुःख-दोष-बुद्धि करके वैराग्य प्राप्त करने की बात भगवान्  ने गीता में कही है-‘दुखःदोषानुदर्शनम्’ (१३|८) नारी में दुःख-दोष दिखलाकर उससे आसक्ति हटाने और चितवृति को भगवान की और लगानेके लिए ही शास्त्र की नारी-निन्दा में प्रवर्ती हुई है | ‘नारी नरक की खानी है; अग्नि, साँप, विष, क्षुरधार आदि से भी भयानक है; साक्षात् सिंहिनी और सर्पिणी है’ इत्यादि वर्णन उसके प्रति पुरुष के ह्रदय में जो रमणीयता का भाव है, उसे हटाने के लिए ही है | स्त्री में भोगी-बुद्धि का नाश हो जाय, इसलिए ये सारी बातें कही गयी है | वेदों में जहाँ स्त्री की बड़ी प्रसंशा है, वहाँ भी उसे निंदनीय कहा है |

ॠग्वेद में कहा है :

इंद्र ने कहा-‘नारी का दमन नहीं किया जा सकता; क्योकि उसकी बुद्धि स्वल्प है |’ (८|३३|१७)

‘स्त्रियों से मित्रता करना व्यर्थ है, क्योकि उनका ह्रदय भेडिये के समान है |’ (१०|१५|१५)

मनु महाराज कहते है :

‘इस लोक में पुरुषों को विकारग्रस्त कर देना-यह नारियों का स्वभाव है | अतएवबुद्धिमान पुरुष नारियों की और से कभी प्रमाद नहीं करते-असावधान नहीं रहते | संसार में कोई मूर्ख हो चाहे विद्वान, काम-क्रोध के वशीभूत हुए पुरुष को स्त्रियाँ अनायास ही कुमार्ग में ले जा सकती है | (इसलिए) पुरुष को चाहिये की वह माता, बहिन या पुत्री के पास भी एकान्त में न बैठे, क्योकि इन्द्रिय-समूह इतना बलवान है की विद्वान के चित को भी खीच लेता है |’ (२|२१३-२१५) शेष अगले ब्लॉग में ....            

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

  नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!   
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Ram