|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद शुक्ल, पन्चमी, मंगलवार,
वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे.....नारीमें इतना आकर्षण है की साधनसंलग्न तपस्वी, वनवासी
ऋषि, महर्षि, राजर्षि तथा देवर्षि भी नारी-संसर्ग में आकर अपनी साधनाकी रक्षा नहीं
कर पाये | विश्वामित्र, दुर्वासा, सौभरी, नारद आदि इसके उदाहरण है | इसलिए विषयों
में दुखरूप दोषों को देखकर या उनमे दुःख-दोष-बुद्धि करके वैराग्य प्राप्त करने की
बात भगवान् ने गीता में कही है-‘दुखःदोषानुदर्शनम्’ (१३|८) नारी में दुःख-दोष दिखलाकर उससे आसक्ति हटाने और चितवृति
को भगवान की और लगानेके लिए ही शास्त्र की नारी-निन्दा में प्रवर्ती हुई है |
‘नारी नरक की खानी है; अग्नि, साँप, विष, क्षुरधार आदि से भी भयानक है; साक्षात्
सिंहिनी और सर्पिणी है’ इत्यादि वर्णन उसके प्रति पुरुष के ह्रदय में जो
रमणीयता का भाव है, उसे हटाने के लिए ही है | स्त्री में भोगी-बुद्धि का नाश हो
जाय, इसलिए ये सारी बातें कही गयी है | वेदों में जहाँ स्त्री की बड़ी प्रसंशा
है, वहाँ भी उसे निंदनीय कहा है |
ॠग्वेद में कहा है :
इंद्र ने कहा-‘नारी का दमन नहीं किया जा सकता; क्योकि उसकी बुद्धि स्वल्प है
|’ (८|३३|१७)
‘स्त्रियों से मित्रता करना व्यर्थ है, क्योकि उनका ह्रदय भेडिये के समान है
|’ (१०|१५|१५)
मनु महाराज कहते है :
‘इस लोक में पुरुषों को विकारग्रस्त कर देना-यह नारियों का
स्वभाव है | अतएवबुद्धिमान पुरुष नारियों की और से कभी प्रमाद नहीं करते-असावधान
नहीं रहते | संसार में कोई मूर्ख हो चाहे विद्वान, काम-क्रोध के वशीभूत हुए पुरुष
को स्त्रियाँ अनायास ही कुमार्ग में ले जा सकती है | (इसलिए) पुरुष को चाहिये की
वह माता, बहिन या पुत्री के पास भी एकान्त में न बैठे, क्योकि इन्द्रिय-समूह इतना
बलवान है की विद्वान के चित को भी खीच लेता है |’ (२|२१३-२१५) शेष अगले ब्लॉग में
....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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