|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद शुक्ल, सप्तमी, गुरूवार,
वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे.....महात्मा सुन्दरदास जी कहते हैं:-
कामिनी को अंग अति मलीन महा असुद्ध,
रोम रोम मलिन, मलिन सब द्वार है |
हाड, मॉस, मज्जा, मेद, चर्म सू लपेट राखे,
ठौर ठौर रकत के भरेहू भण्डार है ||
मूत्र हु पुरीष आंत एकमेक मिल रही,
और हूँ उदर माँहि विविध बिकार है |
सुन्दर कहत नारी नख सिख निन्दा रूप,
ताहि जो सराहै, सो तो बडोई गँवार है ||
इसी प्रकार अन्यान्य शास्त्रों और संतों ने नारी की विविध प्रकार से निन्दा की
है और सत्य ही है की जो पुरुष नारी के उच्चतम ह्रदय, उसके त्यागमय और स्नेहमय मातृत्व् तथा उसके पवित्रतंम् देवी-भाव की और न देखकर उसके
शरीरसथ स्थूल मासपिण्डो और मल-मूत्र के गहरोकि और लालायित सतृष्ण दृष्टी से देखेगा,
उसे इसके बदले में पवित्र अमृत थोडे हि मिलेगा ? उसके लिये नारी वरदायिनी देवी के
रूप में थोडे हि आत्मप्रकाश करेगी ? उसके लिये तो वह निश्चय ही नरकका द्वार,* भीषन बघिनि, विषधर सर्पिणी और सर्वहरा मृत्यु ही होगी |
विचार करने पर पता लगेगा की इस नारी-निन्दा में नारी-रक्षा भी अंतनिर्हित है | नारी के पतन में
कारण है पुरुष की नीच प्रवृति | पुरुष की नीच प्रवृति यदि किसी कारण से मर जाय तो
नारी का पतन हो ही नहीं सकता | एक तो उसके पास पातिव्रत्य का रक्षा कवच है; दूसरा
यदि कही गिरना भी चाहेगी तो शास्त्र के वचनानुसार नारी की भीषणता से डरा हुआ, उसे
भयानक बाघिनि तथा नरक की खानि समझनेवाला, नीच प्रवृति से रहित पुरुष उससे
स्वाभाविक ही दूर रहेगा | फलत: नारी का पतन भी नहीं होगा | इस प्रकार दोनों ही पतन
से बच जायेंगे और दोनों ही धर्मपथ पर आरूढ़ होकर मानव-जीवन के परम लक्ष्य भगवान को
प्राप्त कर सकेंगे |
अतएव शास्त्रों और संतों की द्वारा की गयी नारी-निन्दा नारी
और पुरुष दोनों के लिए कल्याणकारी है और इसी सत-उद्देश्य से की गयी है | वस्तुत:
सत्य स्थिति भी यही है | शेष अगले ब्लॉग में ....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
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*भगवान ने काम, क्रोध, लोभ को नरक का द्वार बतलाया है | क्रोध और लोभ वस्तुत:
काम के ही उद्भूत विकार है, अत कामस्वरुप ही है | काम ही प्रतिहत होने पर क्रोध और
सफल होने पर लोभ के नाम से सफल होता है |
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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