|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद शुक्ल, अष्टमी, शुक्रवार,
वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे.....दूसरी दृष्टी से विचार करने पर यह सिद्ध होता है कि यह
निन्दा वस्तुत: साध्वी-सती नारी की नहीं है | सती-साध्वी नारी तो अपने पवित्र
पातिव्रत्य के प्रताप से पापी पुरुषों की पाप भावना को या पापात्मा पुरुषों की पाप
भावना को या पापात्मा पुरुषों के शरीर को अपने संकल्पमात्र से नष्ट कर सकती है |
यह निदा तो कुलटा स्त्रियों की हैं, जो अपनी दूषित आन्तरिक वृति या बाह्य क्रियाओं
से पुरुषों को कलंकित किया करती है |
ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्रीनारद जी कहते है-‘स्त्रियाँ तीन प्रकार की होती
है-साध्वी, भोग्या और कुलटा | जो परलोक के भय से, यश की इच्छा से तथा स्नेहवशत:
स्वामी की निरन्तर सेवा करती है वह ‘साध्वी’ है | जो मनोवांछित गहनों-कपड़ोंकी चाह
से कामस्नेहयुक्त होकर पति की सेवा करती है, उसे ‘भोग्या’ कहते है और ‘कुलटा’ नारी
तो वैसी ही होती है, जैसे ‘कुलान्गार’ पुरुष होता है | यह कपटसे पति सेवा करती है,
इसमें पति भक्ति नहीं होती | इसका ह्रदय छूरे की धार-सा तेज होता है, पर इसकी वाणी
अमृत सी होती है | इसका काम पुरुष से आठगुना, आहार दूना, निष्ठुरता चौगुनी और
क्रोध छ: गुना होता है | ऐसी पुंश्चली नारी जारके लिए पतितक को मार डालने में नहीं
हिचकती (ब्र० वै० ब्रह्मखण्ड, अध्याय २३)|’
इस प्रकार कुलटा नारी से तो सभी को बचना चाहिये; परन्तु वैराग्य की साधना करने
वाले मुमुक्षु पुरुष के लिए तथा सन्यासी, वानप्रस्थ और ब्रह्मचारियों के लिए तो
नारीमात्र ही साधन-पथ का अवरोध करने वाली होती है | इस दृष्टी से भी नारीकी निन्दा
करना सार्थक है | इस प्रकार नारी में दोष देखकर गृहस्थ पर-स्त्री का त्याग करे और
ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ तथा सन्यासी नारीमात्र का | यही नारी-निन्दा का उददेश्य है|
आजकल तो नारीजाति की नीचता उत्तरोतर बढती जा रही है | वे
भांति-भाँतीसे नारी का पतन करने में लगे हुए है | शास्त्रों में नारी की जो निन्दा
की गयी है, उससे सचमुच कहीं अधिक निन्दा का पात्र वर्तमान काल का पुरुषवर्ग है |
वस्तुत: आज नारी को ही इस दुष्ट समाज से बचना चाहिये | नारी इस बात को न समझकर जो
पुरुष-संसर्गमें अधिक आने लगी है और इसी में अपना अभ्युदय मान रही है, यह उसकी
बहुत बड़ी भ्रान्ति है | आज के कुत्सितह्रदय पुरुषसमाज ने उसे बहकाकर भ्रम में डाल
दिया है | नारी बाघिनी-सापिनिं हो या न हो; परन्तु आज का नीच-स्वार्थ के वश में
पड़ा हुआ यह पुरुष तो नारी के लिए साँप-बाघसे भी बढ़कर भयानक है, जो ऊपर से
साँप-बाघ-सा डरावना न दीखने पर भी-वरं मित्र-सा प्रतीत होने पर भी-वस्तुत: नारी के
महान पतन के सतत प्रयत्न में लगा रहता है |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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