|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद
शुक्ल, द्वादशी, सोमवार, वि० स० २०७०
गौएँ प्राणियों का आधार तथा कल्याण की निधि है | भूत और
भविष्य गौओं के ही हाथ में है | वे ही सदा रहने वाली पुष्टिका कारण तथा लक्ष्मी की
जड हैं | गौओं की सेवा में जो कुछ दिया जाता है, उसका फल अक्षय होता है | अन्न
गौओं से उत्पन्न होता है, देवताओं को उत्तम हविष्य (घृत) गौएँ देती है तथा स्वाहाकार
(देवयज्ञ) और वषटकार (इन्द्रयाग) भी सदा गौओं पर ही अवलंबित है | गौएँ ही यज्ञ का
फल देने वाली है | उन्हीं में यज्ञौ की प्रतिष्ठा है | ऋषियों को प्रात:काल और
सांयकाल में होम के समय गौएँ ही हवंन के योग्य घृत आदि पदार्थ देती है | जो लोग
दूध देने वाली गौ का दान करते है, वे अपने समस्त संकटों और पाप से पार हो जाते है
| जिनके पास दस गायें हो वह एक गौ का दान करे,जो सौ गाये रखता हो, वह दस गौ का दान
करे और जिसके पास हज़ार गौएँ मौजूद हो, वह सौ गाये दान करे तो इन सबको बराबर ही फल
मिलता है |
जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्निहोत्र नहीं करता, यो
हज़ार गौएँ रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कंजूसी नहीं छोड़ता-ये तीनो
मनुष्य अर्घ्य (सम्मान) पाने के अधिकारी नही है |
प्रात:काल और सांयकाल में प्रतिदिन गौओं को प्रणाम करना
चाहिये | इससे मनुष्य के शरीर और बल की पुष्टि होती है | गोमूत्र और गोबर देखर कभी
घ्रणा न करे | गौओं के गुणों का कीर्तन करे | कभी उसका अपमान न करे | यदि बुरे स्वप्न
दीखायी दे तो गोमाता का नाम ले | प्रतिदिन शरीर में गोबर लगा के स्नान करे | सूखे
हुए गोबर पर बैठे | उस पर थूक न फेकें | मल-मूत्र न त्यागे | गौओं के तिरस्कार से
बचता रहे | अग्नि में गाय के घृत का हवन करे, उसीसे स्वस्तिवाचन करावे | गो-घृत का
दान और स्वयं भी उसका भक्षण करे तो गौओं की वृद्धि होती हैं | (महा० अनु० ७८
|५-२१) .......शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
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