|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद
शुक्ल, पूर्णिमा, गुरूवार, वि० स० २०७०
पदरत्नाकर ६८ -(राग काफी-ताल दीपचंदी)
केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम ! देखूँ एक तुम्हारी ओर।
अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त, विभोर॥
प्रभो ! एक बस, तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार।
प्राणोंके तुम प्राण, आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥
भला-बुरा, सुख-दुःख,
शुभाशुभ मैं, न जानता कुछ भी नाथ !।
जानो तुम्हीं, करो तुम सब ही, रहो निरन्तर मेरे साथ॥
भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं, स्मृति ही हो बस, जीवनसार।
आयें नहीं चित-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥
एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक।
एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङङ्गी एक॥
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पदरत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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