Thursday, 19 September 2013

पदरत्नाकर ६८ - केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम ! देखूँ एक तुम्हारी ओर।


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद शुक्ल, पूर्णिमा, गुरूवार, वि० स० २०७०

 पदरत्नाकर   -(राग काफी-ताल दीपचंदी)

 
केवल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम ! देखूँ एक तुम्हारी ओर।

अर्पण कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त, विभोर॥

प्रभो ! एक बस, तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार।

प्राणोंके तुम प्राण, आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥

भला-बुरा, सुख-दुःख, शुभाशुभ मैं, न जानता कुछ भी नाथ !।

जानो तुम्हीं, करो तुम सब ही, रहो निरन्तर मेरे साथ॥

भूलूँ नहीं कभी तुमको मैं, स्मृति ही हो बस, जीवनसार।

आयें नहीं चित-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥

एकमात्र तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक।

एक प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित सङङ्गी एक॥

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पदरत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

 
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Ram