Monday, 2 September 2013

आज का भ्रष्टाचार और उससे बचने के उपाय -४-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद कृष्ण, द्वादशी, सोमवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे.......इसके साथ ही चार बाते और हिन्दू-संस्कृति में छोटे-बड़े सबके स्वभावगत-सी हो गयी थी

(१)      मनुष्य जीवन का चरम और परम उदेश्य मोक्ष या भगवत्प्राप्ति है | इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानव-जीवन में साधना करना है |

(२)      पुनर्जन्म अवश्य होगा और उसमे हमे अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल निश्चितरूप से भोगना पड़ेगा |

(३)      शास्त्र सत्य है और उनके कथनानुसार सुख-दुःख हमारे कर्मों का फल
       है |

(४)      कर्तव्य-पालन करना ही हमारा धर्म है, केवल अधिकार पाना धर्म नहीं |     

इन चार बातों के कारण स्वभाव से ही भोगों के त्याग का महत्व था, उसी में जीवन की महत्ता मानी जाती थी | चोरी-जारी आदि पापों का फल विविध योनियों में एवं नरकादी में अवश्य भोगना पड़ेगा, यह विश्वास था |

दुसरे की किसी वस्तु पर मन चलाना पाप है और उसे छल-बल-कौशल से ले लेना तो महान अपराध है-यह मान्यता थी | सुख-दुःख हमारे कर्म के अनिवार्य फल है | बुरे कर्म करने पर उसका अच्छा फल तो नहीं हो सकता; फिर बुरा कर्म क्यों करे-यह दृढ भावना थी | और हमे शास्त्रानुसार अपना कर्तव्य पालन करते जाना है, कर्मका फल तो भगवान के हाथ में है-यह दृढ आस्था थी | इससे लोग स्वभाव से ही पापाचारण से बचना चाहते थे | शेष अगले ब्लॉग में ....

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram