Tuesday 3 September 2013

आज का भ्रष्टाचार और उससे बचने के उपाय -५-


     || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद कृष्ण, त्रयोदशी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे.......आज इश्वारका कोई भय नहीं | लोग व्याख्यान-मंचों पर सहस्त्रों नर-नारियों के सामने छाती फुलाकर और गला फाड़कर कहते है की ‘ईश्वर तो कभी का मर गया | मनुष्य की कल्पना में ही ईश्वर था, आज का ज्ञानी और बुद्धिमान मनुष्य इस कल्पना से छुटकारा पाकर स्वतन्त्र हो गया है |’ और जनता ऐसे भाषणों का स्वागत करती है | धर्म को अवनति का कारण बताया जाता है | शास्त्रों में तथा कर्मों के फल और पुनर्जन्म में विश्वास उठता जा रहा है, सभी अधिकार चाहते है | कर्तव्य पर किसी का ध्यान नहीं है |

शक्तिमता , अधिकार और धन का लोभ इतना बढ़ गया है की उसने मनुष्य को असुर नहीं पिशाच बना दिया है | इसी से आज का मानव एक-दुसरेपर खून चूसने का दोष लगाता है और स्वयं मानो छल-बल-कौसल से दिन-रात खून चूसने का ही विशद व्यापार कर रहा है | उसने केवल इसी सिद्धांत को मान लिया है की किसी भी उपाय से हो, धनकी-भोग पदार्थों की प्राप्ति होनी चाहिये; बस यही कामोपभोग ही सब कुछ है | कामोपभोगपरमा  ऐतावदिति निश्चिता: || (गीता १६|११)    

यह कहा जा सकता है की धन से सुख मिलता है; क्योकि उससे प्राय: सभी आवश्यकताओं की पूर्ती होती है | यह आंशिक सत्य भी है; परन्तु यह सुख वस्तुत: धन का नहीं है, हमारी आत्म-भावना का है | धन में तो सुख है ही नहीं | सुख है आत्मा की शान्ति में | जो अशान्त है-दिन रात उतरोतर बढती हुई कामना की आग से जलता है, उसको सुख कहाँ-‘अशान्तस्य कुत: सुखम् |’ यह नियम है की जैसे आग में ईधन तथा घी डालते रहने से आग बुझती नहीं-प्रत्युत बढती है, वैसे ही भोग-कामना की पूर्ती से कामना घटती नहीं, बल्कि बढती है | सौवाला हजारों-लाखों की चाह करता है तो लाखवाला करोड़ों-अरबों की चाह करता है |    

एक नियम यह भी है की एक अभाव की पूर्ति अनेकों नये अभावों की सृष्टी करने वाली है | और जबतक आभाव का अनुभव है, तब तक प्रतिकूलता है और प्रतिकूलता रहते चित सर्वथा अशान्त रहेगा और अशान्त चित में सुख हो ही नहीं सकता | लोग भूल से मानते है की पैसे वाले सुखी है; पर यह बात वस्तुत: नहीं है | उनके हृदय में जैसी आग धधकती है, वैसी गरीबों शायद नहीं धधकती ! इसका अनुभव भुक्तभोगी ही कर सकते है | शेष अगले ब्लॉग में ....

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram