Friday, 6 September 2013

नारी-निन्दा की सार्थकता -२-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद शुक्ल, प्रतिपदा, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 

गत ब्लॉग से आगे...मानव-जीवन का मुख्य ध्येय है-भगवत्प्राप्ति | भगवत्प्राप्ति के लिए जीवन का संयमित, पवित्र तथा साधन-संपन्न होना अत्यन्त आवश्यक है | इस परमार्थसाधन में सर्वप्रथम विघ्न है-विषयसन्ग | मनुष्य का पूर्ण पतन-उसका सर्वनाश किस क्रम से होता है, इस सम्बन्ध में भगवान् कहते है:-

ध्यायते विषयान् पुसं: संगस्तेषुपजायते |

संगास्त्स्नजायते काम: कामात्क्रोधोअभिजायते ||

क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम |

स्मृतिभ्द्रान्श बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रन्ष्यति || (गीता २ | ६२-६३)

‘विषयों का चिन्तन करनेवाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति होती है, आसक्ति से कामना पैदा होती है, कामना से क्रोध उत्पन्न होता है | क्रोध से सम्मोह-विवेकशून्यता होती है; अविवेक से स्मृतिभ्रंश और स्मृतिभ्रंश से बुद्धिका नाश होता है एवं बुद्धि के नाश से वह आप नष्ट हो जाता है |’

विषयोंमें सर्वप्रधान आकर्षक विषय है-‘पुरुषों के लिये नारी और नारी के लिए पुरुष | कहना नही होगा की इसमें नारी की अपेक्षा पुरुष-प्राणी का  चित अधिक दुर्बल, अत: उसका पतन बहुत शीघ्र हो जाता है (और उसके पतन में नारी का पतन तो है ही; क्योकि उसीके आधारसे पुरुष गिरता है ) | नारीका दर्शन-स्पर्श तो दूर रहा, उसका श्रवण-कथन भी पुरुषों को गिराने के लिए काफी है | इसलिए विवाह-बन्धनके द्वारा एक स्त्रीके साथ एक पुरुष का संसर्ग सीमित करके ऋषि-प्रणीत शास्त्रोंमें उसे ऐसा नियमबद्ध कर दिया है की जिससे उसके जीवन में कभी असंयम आ ही न सके; क्योकि किसी एकके प्रति सतत आकर्षण दीर्घकाल तक नही रहता | उसमे स्वाभाविकता आ जाती है और हिन्दू-शास्त्रविधिके अनुसार एकके अतिरिक्त दुसरे का चिन्तन करना भी स्त्री-पुरुष दोनों के लिए व्यभिचार है | इसीलिये आठ प्रकार के मैथुन* बतलाकर उनका निषेध किया गया है | शेष अगले ब्लॉग में ....            

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

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*स्त्री सम्बन्धी चर्चा सुनना, कहना, स्त्रियों के साथ खेलना, उन्हें देखना, गुप्त बात करना, संकल्प करना, प्रयत्न करना और अन्ग-सन्ग करना-ये आठ प्रकार के मैथुन है |

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram