|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण,
द्वादशी श्राद्ध, मंगलवार, वि० स० २०७०
बलिदान
गत ब्लॉग से आगे... ख्याल करो, तुम्हे खूटें से बाधकर यदि कोई तुम्हारे
गले पर छुरी फेरे तो तुम्हे कितना कष्ट होगा ? नन्ही-सी-सुई या काँटा चुभ जाने पर
ही तलमला उठते हो | फिर इस पापी पेट के लिए राक्षओ की भाँती मॉस से जीभ को तृप्त
करने के लिए गरीब पशु-पक्षियों को धर्मके नाम पर-अरे, माता के भोग के नाम पर मारते
तुम्हे लज्जा नहीं आती ? मानो उन्हें कोई कष्टही नहीं होता | याद रखों, वे सब
तुम्हारा बदला लेंगे | और तुम अपनी करनी पर निरुपाय होकर हायतोबा करना पड़ेगा |
अतएव सावधान ! माता के नाम पर गरीब निरीह पशु-पक्षियों को बलि देना बंद कर दो,
माता के पवित्र मंदिरों को उसी की प्यारी संतानों के खून से रंग कर माँ के कृपा का
अकृपाभाजन मत बनो |
बलिदान करो
बलिदान जरुर करो, परन्तु करो अपने
स्वार्थ और अपने दोषों का | माँ के नाम पर माँ की दुखी संतान के लिए अपना
न्यायोपार्जित धन दान देकर धन का बलिदान करो; माँ की दुखी संतान का दुःख दूर करने
के लिए अपने सारे सुखों की और अपने प्यारे शरीर की भी बलि चढ़ा दो | न्योछावर कर दो
निष्काम भाव से माँ के चरणों में अपना सारा धन, जन, बुद्धि, बल, ऐश्वर्य, सत्ता और
साधन उसकी दीन-हीन, दुखी, दलित संतान को सुखी करने के लिए | तुम पर माँ की कृपा
होगी ! माँ के पुलकित ह्रदय से जो असिर्वाद मिलेगा, माँ की गद-गद वाणी तुम्हे अपने
दुखी भाइयों की सेवा करते देखकर जो स्वाभाविक वरदान देगीउससे तुम निहाल हो जाओगे |तुम्हारे
लोक-परलोक दोनों बन जायेंगे | तुम प्रेम और श्रेय दोनों को अनायास पा जाओगे, माँ
तुम्हे गोद में लेकर तुम्हारा मुख चूमेगी और फिर तुम कभी उनकी शीतल सुखद
नित्यानंदमय परमधाममय गोद से नीचे नहीं उतरोगे |... शेष अगले ब्लॉग
में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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