Friday, 4 October 2013

भगवती शक्ति -14-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, अमावस्या  श्राद्ध, शुक्रवार, वि० स० २०७०

किसी का बुरा न चाहों

गत ब्लॉग से आगे... नृरसिंह देव सबके लिए भयानक थे, परन्तु प्रहलाद के लिए भयानक नहीं थे | फिर, मातरूप तो कैसा भी हो, अपने बच्चे के लिए कभी भयानक होता ही नहीं, सिंघ्ह्नी का बच्चा अपनी माँ से कभी नहीं डरता | अत: उनकी गोद में कभी न हटो, उनका आश्रय पकडे रहो | माँ अपना काम आप करेगी, मांगोगे, उसमे धोखा खाओगे | पता नहीं, कही तुम्हे कहीं राज्य मिलने की बात सोची जा रही हों और तुम मोहवश कौड़ी ही मांग बैठों | असल में तो तुम्हे मांगेने की बात याद  ही क्यों आनी चाहिये ?  तुम्हारे मन में आभाव का ही, कमी का ही बोध क्यों होना चाहिये, जब की तुम त्रिभुव्नेश्वरी अनन्त ऐश्वरमयी माँ की दुलारी संतान हों ? माँ का सारा खजाना तो तुम्हारा ही है | परन्तु तुम्हे खजाने से भी सरोकार क्यों होना चाहिये | छोटा बच्चा खजाने और धन-दौअलत को नहीं जानता, वह तो जानता है केवल माँ  की गोद को, माँ के आंचल को और माँ के दूध भरे स्तनों कोण | बस इससे अधिक उसे और क्या चाहिये | माँ बहुत ही मूल्यवान वस्तु  देकर भी उसे अपने से अलग करना चाहे तब भी वह अलग नही होगा | वह उस बहुमूल्य वस्तु को-भोग और मोक्ष को  तृणवत फेक देगा | परन्तु माँ का पल्ला कभी छोड़ना नहीं चाहेगा | ऐसी हालत में राजराजेश्वरी सर्वलोकमहेश्वरी परम स्नेहमयी माँ भी उसे कभी नहीं छोड़ सकती | इसके सिवा शिशु-संतान को और क्या चाहिये ? अतएव तुम भी माँके छोटे भोले-भाले बच्चे बन जाओ | खबरदार ! कभी माँ के सामने सयाने बनने की कल्पना मन में भी न आने पाए  |... शेष अगले ब्लॉग में....       

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram