Saturday, 5 October 2013

भगवती शक्ति -15-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, अमावस्या, शारदीय नवरात्ररारम्भ, शनिवार, वि० स० २०७०

 
आत्मसमर्पण के द्वारा माँ को स्नेह सूत्र में बाँध लो
 

गत ब्लॉग से आगे... कुंडलिनी  और ष्ठचक्रों की बात सब ठीक है, शास्त्रसम्मत और रहस्यमय है, परन्तु वर्तमान समय में योगसाधन बड़ा कठिन है, उपयुक्त अनुभवी गुरु भी प्राय: नहीं मिलते | इस स्थतिमें योग के चक्कर में न पडकर सरल शिशुपन से आत्मसमर्पण भाव से उपासना करके माँ को स्नेह्सुत्र में बाँध लो | माँ की कृपा से सारी योगसिद्धियाँ तुम्हारे चरणों पर बिना ही बुलाये  आ-आकर लोटने लगेंगी | मुक्ति तो पीछे-पीछे फिरेगी, इस आशा से की तुम उसे स्वीकार कर लो, परन्तु तुम माता की सेवा में ही सुख मानने वाले उसकी और नज़र उठाकर ताकना भी नहीं चाहोगे |

परम सुख की प्राप्ति

तुम्हे माँ विचित्र-विचित्र लीलाएं दिखलायेगी-अपनी लीला का एक पात्र बना लेगी | कभी तुम व्रज की गोपी बनोगे तो कभी मिथिला की सीता-सखी; कभी उमा की सहचरी बनोगे तो कभी माँ लक्ष्मी की चिरसंगिनी सहेली; कभी सुदामा-श्रीदामा बनोगे तो कभी लक्ष्मण-हनुमान; कभी वीरभद्र-नंदी बनोगे तो कभी नारद और सनत्कुमार और चामुण्डा बनोगे तो कभी चंडिका | मतलब यह है की तुम माँ की विश्व मोहिनी लीला में लीला रूप बन जाओगे-फिर तुम्हे मोक्ष से कोई प्रयोजन ही नहीं रह जायेगा, क्योकि मोक्ष का अधिकार तो माँ की लीलासे अलग रहने वाले लोगों को ही है |

मोक्ष तुम्हारे लिए तरसेगा, परन्तु तुमको महेश्वर-महेश्वरी का तांडव-लास्य, राधेश्याम का नाचगान देखने और डमरूध्वनी या मुरली की मधुरतान सुनने से ही कभी फुरसत नही मिलेगी | इससे बढकर धन्यजीवन और परम सुख कौन सा होगा ? ..... शेष अगले ब्लॉग में.     

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram