|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, तृतीया, सोमवार, वि० स० २०७०
धन का लोभ त्याग करों
गत ब्लॉग से आगे...... यही हाल धन का है | संसार में कौन सा धनी शान्त
है और सुखी है | धन की लालसा कभी मिटती नहीं | ज्यो-ज्यो धन बढेगा त्यों-त्यों
कामना और लालसा बढ़ेगी और त्यों-त्यों दुःख भी बढेगा | पाप, अभिमान आदि प्राय: धन
से ही होते है | खुसामदी, लुच्चे , बदमाश लोग धन पर ही, मैले पर मखियों की भाँती
मंडराया करते है और धनवानों को सदा बुरे मार्ग पर ले जाने की कोशिश करते है |
धनवान को असली महात्मा का सन्ग मिलना तो बहुत ही कठिन होता है; क्योकि वह तो धन के
मद में कहीं जाने में अपनी पोजीशन की हानि समझता है, और खुशामंदियों, चाटुकारों और
चीनी पर चिपटी चींटी की भाँती धन चूसने वाले लोगों से घिरे हुए उसके पास कोई
नि:स्वार्थी असली महात्मा क्यों जाने लगे? यदि कभी कोई कृपावश चले भी जाते है तो
धनी से उनका मिलना कठिन हो जाता है और यदि मिलना भी हुआ तो वह उन्हें कोई भीखमंगा
समझकर तिरस्कार करता है, क्योकि उसके पास प्राय: ऐसे ही लोग आया करते है, इससे
उसको सभी वैसे ही दीखाई देते है | झंझटों का तो धनियों के पार नहीं रहता, निकाम्मे
कामों से कभी उन्हें फुर्सत नहीं मिलती | नरक की सामग्री-भोगों का वहाँ बाहुल्य
रहता है, जिससे नरक का मार्ग क्रमश: अधिकाधिक साफ़ होता जाता रहता है, अतएव धन के
लोभ को छोड़ दो और परमधन रूप माँ की सेवा में लग जाओं | यदि पार्थिव-धन पास में हो
तो उसका अपना मानकर अभिमान न करों और कुसंगति से पिंड छुड़ाकर उस धन को माता की
पूजा सामग्री समझकर उसे माँ की यथार्थ पूजा-उसकी दुखी संतान को सुख पहुचाने के
कार्य में लगा कर माँ के कृपा-भाजन बनो |..... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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