|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, चतुर्थी, मंगलवार, वि० स० २०७०
मान बड़ाई में मत फँसो
गत ब्लॉग से आगे...... पद-प्रतिष्ठा
और मान-बड़ाई तो बहुत ही हानिकर है | जो मान-बड़ाई के मोह में फस गया उसके धर्म,
कर्म, साधना, पुरुषार्थ ‘सब भांग के भाड़े में’ चले गये | उसने मानो परमधन
परमात्म-प्रेम को विषपूर्वक स्वर्णकलशरूप
मान-बड़ाई के बदले में खो दिया | अतएव रूप, धन, पद, प्रतिष्ठा, मान-बड़ाई आदि
के लिए चिन्तित न होओं और न इनकी प्राप्ति चाहों | ये परमार्थ का साधन नष्ट करने
वाले महानदुःखदाई और नरकप्रद है |
माँ की उपासना करके उसके बदले में तो इन्हें कभी मागों ही मत | अमृत के बदले जहर
पीने के समान ऐसी मूर्खता कभी न करों | माँ से मांगों सच्चा प्रेम, माँ का
वात्सल्य, माँ की कृपा, माँ का नित्य-आश्रय और माँ की सुखमयी गोद ! माँ से माँगकर
वैराग्यशक्ति ले लों और विषयशक्ति रूप वैरी को मार भगाओ |
याद रखो, वैराग्य शक्ति में अदभुत सामर्थ्य है | जिन विषयों
के प्रलोभन में बड़े-बड़े धीर-वीर और विद्वान पुरुष फँस जाते है, वैराग्यवान पुरुष
उस और ताकता भी नहीं |
सदाचार शक्ति को बढाओ
इसी प्रकार सदाचार-शक्ति और दैवीसम्पद-शक्ति को बढाओ |
जिसकी सदाचार और दैवीसम्पद-शक्ति जितनी बढ़ी हुई होगी, वह उतना ही अधिक परमात्मरूपा
माँ का प्रिय-पात्र होगा और उतना ही अधिक शीघ्र माँ के दर्शन का अधिकारी होगा |
स्मरण रखो ! माँ के विभिन्न रूप
केवल कल्पना नहीं है, सत्य है और तुम्हे माँ की कृपा से उनके साक्षात् दर्शन हो
सकते है |..... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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