|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, पन्चमी, बुधवार, वि० स० २०७०
भगवान को बाँधने की डोरी
गत ब्लॉग से आगे...... माँ के दर्शन का सर्वोत्तम उपाय है-दर्शन के
लिए व्याकुल होना | जैसे छोटा बच्चा जब किसी वस्तु में न भूलकर एकमात्र माँ के लिए
व्याकुल होकर रोने लगता है, केवल माँ-माँ पुकारता है और किसी बात को सुनना ही नहीं
चाहता तब माँ दौड़ी आती है और उसके आसूँ
पूछकर उसे तुरन्त अपनी गोद में छिपाकर मुहँ चूमने लगती है | इसी प्रकार वे
परमात्मरुपी जगजननी माँ काली या माँ श्रीकृष्ण भी तुम्हारा रोना सुनकर-पुकार सुनकर
तुम्हारे पास आये बिना नहीं रहेंगे, अतएव उत्कंठित ह्रदय से व्याकुल होकर रोओ-अपने
करुणक्रन्दन से करुणामयी माँ के ह्रदय को हिला दो-पिघला दो |
राम, कृष्ण, हरी, शंकर, दुर्गा, काली, तारा, राधा, सीता आदि
नामों की निर्मल और उच्ची पुकार से आकाश को गूंजा दो | भगवती माँ तुम्हे जरुर
दर्शन देगी | करुणापूर्ण नामकीर्तन माँ को बुलाने का परम साधन है | समस्त मन्त्रों
में यह नाममन्त्र मन्त्रराज है और इससमे कोई विधि-निषेध नहीं है, कोई भय नहीं है |
हम सरीखे बच्चों के लिए तो उस सच्चिदानन्दमयी भगवानरुपी माँ
को बाँध रखने की, बस, यही एक मजबूत और कोमल रेशम डोरी है |
माँ के उपदेश पर ध्यान दो
माँ के उपदेशों पर ध्यान दो | उनके
सारे उपदेश तुमारी भलाई के लिए है | देवीभागवत में ऐसे बहुत-से उपदेश है | भगवती
गीता ऐसे उपदेशों का सुन्दर संग्रह है | और न हो तो, माँ के ही श्रीकृष्णरूप से
उपदिष्ट भगवतगीता को माँ के उपदेशों का खजाना समझो-उसी को आदर्श बनाओं, पथ-दर्शक
बनाओं, उसी के उज्जवल प्रकाश के सहारे माँ का आश्रय लिए हुए, माँ के नामों का रटन
करते हुए माँ को पुकारों-माँ की सेवा करों | गीताशक्ति में भगवती की सारी शक्ति
निहित है |..... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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