|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, षष्ठी, गुरुवार,
वि० स० २०७०
श्रद्धा शक्ति
गत ब्लॉग से आगे...... श्रद्धा-शक्ति को बढाओ, झूठ तर्क न करों |
तर्कों से कभी भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती | माता-पिता से तर्क करना उनका
अपमान करना है | अतएव तर्क छोड़ कर माँ के भक्तों की वाणी पर विश्वास करों और
श्रद्धापूर्वक माँ की सेवा में लगे रहों | इसका अर्थ यह नहीं की शुद्ध
बुद्धि-शक्ति का तिरस्कार करों | जो भगवान में अविश्वास उत्पन्न कराती है बुद्धि ही
नहीं है, बुद्धि-शुद्ध बुद्धि तो वही है जिससे परमात्मा का निश्चय होता है और भजन
में मन लगता है | ऐसी शुद्ध बुद्धि-शक्ति को बढाओ | इस बुद्धि-शक्ति की
अधिष्ठात्री देवता सरस्वतीजी है; बुद्धि के साथ ही माँ की सेवा के लिये धन भी
चाहिये-अतएव न्यायपूर्वक सत्य-शक्ति का आश्रय लिए हुए धनोपार्जन भी करों, धन की
अधिष्ठात्री देवता लक्ष्मीजी है | और साथ ही शारीरिक शक्तिका भी विकास करों, शरीर
की अधिष्ठात्री देवी कालीजी है | अतएव बुद्धि, धन और शरीर की रक्षा और स्वस्थता के
लिये महाशक्ति के त्रिरूप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली को श्रद्धापूर्वक
उपासना करों, परन्तु इस बात को स्मरण रखों की बुद्धि, धन और शरीर की आवश्यकता भी
केवल माता की निष्काम सेवा के लिए ही है, सांसारिक इस लोक और परलोक के सुखोपभोग के
लिए कदापि नहीं |..... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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