Sunday 13 October 2013

भगवती शक्ति -23-


 । । श्रीहरिः  । ।

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन शुक्ल, नवमी, (विजयादशमी)  रविवार, वि० स० २०७०

विधवा नारीकी पूजा

गत ब्लॉग से आगे......विधवा नारी को तो साक्षात् दुर्गा समझकर उनका सम्मान करों । आदरपूर्वक ह्रदय से उसकी पूजा करों; वह त्याग की मूर्ती है । उसे विषय का प्रलोभन कभी मत दो,उसे ब्रह्मचर्य से डिगाओं मत, सताओं मत, दुखी मत करों; माँ विधवाके शापसे तुम्हारा सर्वनाश और उसके आशीर्वाद से तुम्हारा परम कल्याण हो सकता है           

                               नारी-शक्ति से निवेदन

नारीजाति को विलासमें मत लगाओं, इससे नारी-शक्ति का हास होगा, नारी-शक्ति उद्बोधन करों  । हे नारीशक्ति ! हे माँ ! हे देवी ! तुम भी सजग रहों, विलासी पुरुषों के वागजाल में मत फसों  । संयम और त्याग के अपने परम पवित्र अति सुन्दर देव-पूज्य स्वरुप को कभी न छोड़ों ! इंद्र तुमसे कांपते थे, सूर्य तुम्हारी जुबान पर रुक जाते थे, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तुम्हारे सामने शिशु होकर खेलते थे, रावण-से दुर्वृत राक्षस तुमसे थर्राते थे  । तुम साक्षात् भगवती हो  । संयम और त्याग को भूल कर भी न छोड़ों । पुरुषों के मिथ्या प्रलोभनों में मत फसों । उनको सावधान आर दो । आज विवाह और कल सम्बन्धत्याग, इस पातकी आदर्श को कभी न अपनाओं । तुम्हे जो ऐसा करने को कहते है वे तुम्हारा अपमान करते है । जीवन की अखण्ड पवित्रता को दृढतापूर्वक सुरक्षित रखों । संसार के मिथ्या सुखों में कभी न भूलों  । अपनी शक्ति को प्रगट करों । जो तुम्हारी भक्ति करे, तुम्हे देवी के रूप में देखे, उसके लिए लक्ष्मी और सरस्वती बनकर उनका पालन करों । जो दुष्ट तुम्हारी और बुरी नजर करे,उसके लिए साक्षात् रणरंगीनी काली और चण्डिकास्वरुप प्रकाश करों, जिससे तुम्हे देखते ही डर जाए-उसके होश ठीकाने आ जाये         

माँ सबका कल्याण करें

शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही गति है, शक्ति ही आश्रय है, शक्ति ही सर्वस्व है, यह समझकर परमात्मरूपा महाशक्ति का अनन्यरूप से आश्रय ग्रहण करो  । परन्तु किसी भी दुसरे की इष्टशक्ति का आपमान कभी नकरों । गरीब दुखी प्राणियों की अपनी शक्तिभर तन-मन-धनसे सेवा कर महाशक्ति की प्रसन्नता प्राप्त करों । पापाचार, अनाचार, व्यभिचार, लौकिक पंचमकार आदि को सर्वथा त्यागकर माता की विशुद्ध निष्काम भक्ति करों । इसी में अपना कल्याण समझों । मेरी माँ दुर्गा सबका कल्याण ।         

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram