Thursday 31 October 2013

प्रार्थना


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

कार्तिक कृष्ण, द्वादशी, गुरूवार, वि० स० २०७०

प्रार्थना  
 

 हे नाथ ! तुम्हीं सबके स्वामी तुम ही सबके रखवारे हो

तुम ही सब जग में व्याप रहे, विभु ! रूप अनेको धारे हो ।।

 

तुम ही नभ जल थल अग्नि तुम्ही, तुम सूरज चाँद सितारे हो

यह सभी चराचर है तुममे, तुम ही सबके ध्रुव-तारे हो ।।

 

हम महामूढ़  अज्ञानी जन, प्रभु ! भवसागर में पूर रहे

नहीं नेक तुम्हारी भक्ति करे, मन मलिन विषय में चूर रहे ।।

 

सत्संगति में नहि जायँ कभी, खल-संगति में भरपूर रहे

 सहते दारुण दुःख दिवस रैन, हम सच्चे सुख से दूर रहे ।।

 

तुम दीनबन्धु जगपावन हो, हम दीन पतित अति भारी है

है नहीं जगत में ठौर कही, हम आये शरण तुम्हारी है ।।

 

हम पड़े तुम्हारे है दरपर, तुम पर तन मन धन वारी है

अब कष्ट हरो हरी, हे हमरे हम निंदित निपट दुखारी है ।।

 

इस टूटी फूटी नैय्या को, भवसागर से खेना होगा

फिर निज हाथो से नाथ ! उठाकर, पास बिठा लेना होगा ।।

 

हा अशरण-शरण-अनाथ-नाथ, अब तो आश्रय देना होगा

हमको निज चरणों का निश्चित, नित दास बना लेना होगा ।।   

 

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पद-रत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram