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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, त्रयोदशी, बुधवार, वि० स० २०७०
धर्म और उसका फल
धर्मपरायण मनुष्य दुसरे का हित मानते हुए ही अपना हित चाहते है । उन्हें दुसरे
के अहित में अपना हित कभी दिखता ही नहीं । परहित से ही परमगति प्राप्त होती है ।
धर्मशील पुरुष हिताहित का विचार करके सत्पुरुषो का संग करता है, सत्संग से धर्मबुद्धि
बढती है और उसके प्रभाव से उसका जीवन धर्ममय बन जाता है । वह धर्म से ही धन का
उपार्जन करता है । वही काम करता है, जिससे सद्गुणों की वृद्धी हो । धार्मिक पुरुषो
से ही उसकी मित्रता होती है । वह अपने उन धर्मशील मित्रो के तथा धर्म से कमाये हुए
धन के द्वारा इस लोक और परलोक में सुख भोगता है । धर्मात्मा मनुष्य धर्मसम्मत
इन्द्रियसुख को प्राप्त करता है, परन्तु वह धर्म का फल पाकर ही सतुष्ट नहीं हो
जाता । वह सत-असत का विचार करके वैराग्य का अवलंबन करता है । वैराग्य के प्रभाव से
उसका चित विषयों से हट जाता है । फिर वह जगत को विनाशी समझ कर निष्काम कर्म के
द्वारा मोक्ष के लिये प्रयत्न करता है ।... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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